आँखें कहें, अपलक देखता रहूँ
कान कहें, मौन हो सुनता रहूँ।
तुम्हीं कहो! प्रिय रागिनी! कैसे?
तुमसे अपने मन की बात कहूँ।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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