Thursday, December 19, 2024

 

गोपी-चंदन

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

गोपियाँ मिलीं श्रीकृष्ण से

अंतिम बार द्वारिका में।

शिकवे कह भी ना पाईं

और देह चंदन हो गयी।

                       डॉ. मंजूश्री गर्ग

श्रीकृष्ण के मथुरा जाने के बाद गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में दिन-रात लीन रहने लगीं. ना उन्हें अपनी सुध रही और ना परिवार की. दिन-प्रतिदिन कृशकाय होती गयीं. श्रीकृष्ण चाहकर भी मथुरा से वापस वृन्दावन नहीं आ पाये, वरन् परिस्थिति वश उन्हें समुद्र में द्वारिकापुरी बसानी पड़ी. एक बार सब वृन्दावनवासी कान्हा से मिलने द्वारिकापुरी गये, वहाँ गोपियों की अति दयनीय दशा देखकर  कान्हा अश्रु-विह्वल हो गये. ना अपनी व्यथा कह पाये ना गोपियों की सुन पाये. अपनी योगमाया से श्रीकृष्ण ने गोपियों को वहीं द्वारिका की मिट्टी में समाहित कर दिया. वहाँ की मिट्टी चंदन की तरह महकने लगी. आज भी द्वारिका में गोपी-चंदन मिलता है, जिसे भक्तगण प्रसाद के रूप में अपने साथ लाते हैं.

 

 

 

 


Wednesday, December 18, 2024

 

                        श्रीकृष्ण-गोपी प्रेम प्रसंग

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जब गोकुलवासियों को श्रीकृष्ण के जन्म का समाचार मिला तो सब हर्षित होकर नन्द-यशोदा के घर एकत्र होकर बधाई देने पहुँच गये. गोपियाँ आनन्दमग्न होकर नृत्य करने लगीं. श्रीकृष्ण की मोहिनी सूरत देखने के लिये नित्य-प्रति नन्द के यहाँ आने लगीं. कभी श्रीकृष्ण को झूले में झुलातीं, कभी उनका माथा चूमतीं, कभी नजर का टीका लगातीं.

श्रीकृष्ण थोड़ा बड़े हुये तो आस-पास के घरों में जाने लगे, गोपियाँ उन्हें प्रेम से माखन-मिश्री खिलातीं और सुख पाती थीं. कभी-कभी श्रीकृष्ण अकेले ही गोपियों के घर घुस जाते थे और दही-माखन खाकर बाकी का बिखरा जाते थे या दही-माखन के मटकों को सखाओं के साथ मिलकर फोड़ जाते थे. जब गोपियाँ वापस घर आती थीं तो दही-माखन बिखरा देख व मटकियाँ टूटी देख बहुत क्रोधित होती थीं. गोपियाँ शिकायत लेकर यशोदा के पास जाती थीं कि देखो! कान्हा ने हमारे यहाँ दही-माखन की चोरी ही नहीं कि वरन् मटकियाँ भी तोड़ दीं. माँ के पूछने पर साफ मना कर देते, माँ! गोपियाँ झूठ बोल रही हैं, मटकी ऊपर छींके पर रखी थी, भला मेरे छोटे हाथ वहाँ कैसे पहुँच सकते हैं. यदि कुछ दिन श्रीकृष्ण गोपियों के घर नहीं जाते थे तो वे स्वयं श्रीकृष्ण से कहने लगती कि कान्हा जाओ घर में माखन रखा है खा लो. कभी बुलाकर उनसे नृत्य करवातीं और आनंद सुख प्राप्त करतीं.

 

श्रीकृष्ण कुछ बड़े हुये तो गोपियों के साथ बैठकर दूध दुहना सीखने लगे. श्रीकृष्ण को भी गोपियों के साथ छेड़छाड़ करने में आनंद आता था. यमुना से जल लाती हुई गोपियों की मटकियां फोड़ देते थे जिससे गोपियों के सारे वस्त्र गीले हो जाते थे. जब श्रीकृष्ण बाँसुरी बजाते थे तो गोपियाँ अपनी सुध-बुध खो देती थीं और घर का सब काम-काज छोड़कर जहाँ कान्हा बाँसुरी बजाते थे वहीं चली जाती थीं.

गोपियाँ श्रीकृष्ण को साक्षात् परमब्रह्म परमेश्वर का अवतार मानती थीं और पति भाव से उनसे प्रीति करती थीं. श्रीकृष्ण भी गोपियों के मन के भाव को समझकर उनके साथ अनेक लीलायें करते थे जैसे-चीरहरण लीला, महारास लीला, दही-माखन की चोरी, आदि. जब श्रीकृष्ण कंस के बुलाने पर वृन्दावन छोड़कर मथुरा चले गये तो सभी गोपियाँ ऐसे श्रीहीन हो गयीं मानों उनके शरीर में प्राण ही न हों. यहाँ तक कि जब श्रीकृष्ण के कहने पर उद्धव वृन्दावन आये और निर्गुण ब्रह्म का ज्ञानपोदेश गोपियों को सुनाया तो अपनी सीधी सरल, सच्ची भक्ति में डूबी उक्तियों से गोपियों ने उद्धव को निरूत्तर कर दिया.


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Tuesday, December 17, 2024

 

सोलह हजार एक सौ कन्याओं का विवाह

श्री कृष्ण के साथ

डॉ. मंजूश्री गर्ग

भौमासुर(नरकासुर) नाम का पृथ्वी का अत्यन्त बलवान पुत्र था, जिसकी राजधानी प्राग्योतिषपुर थी. भौमासुर ने पृथ्वी के अनेक राजाओं को परास्त कर दिया और उनकी कन्याओं का अपहरण कर अपने घर में कैद कर लिया. धीरे-धीरे राज-कन्याओं की संख्या सोलह हजार एक सौ हो गयी, तब वह सोचने लगा कि जब इनकी संख्या एक लाख हो जायेगी, तो एक साथ इन सबसे विवाह करूँगा. जब श्रीकृष्ण को ज्ञात हुआ कि भौमासुर ने राज-कन्याओं को बंदी बना रखा है तो तुरन्त ही वह भौमासुर के राज्य में गये और भौमासुर को मारकर राज-कन्याओं को आजाद किया. तब राज-कन्याओं ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि हे प्रभु आपने हमें मुक्त कराकर हमारे ऊपर असीम कृपा बरसाई है अब आप कृपा कर हमें अपने चरणों की दासी बनाकर अपनी सेवा में रहने की आज्ञा दें, क्योंकि राक्षस के यहाँ रहने के कारण समाज में हमारे लिये अन्यत्र कोई स्थान नहीं है. तब श्रीकृष्ण उन सोलह हजार एक सौ कन्याओं को लेकर द्वारिका आ गये. वहाँ राजा उग्रसेन की आज्ञा से उन सोलह हजार एक सौ कन्याओं का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया गया, वे सब दिन-रात श्रीकृष्ण की सेवा करने लगीं।

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Monday, December 16, 2024

 

श्री कृष्ण-सत्यभामा और श्री कृष्ण-जाम्बवती

के

विवाह की कथा

डॉ. मंजूश्री गर्ग

(स्यमन्तक मणि की कथा से ही श्री कृष्ण-सत्यभामा और श्री कृष्ण-जाम्बवती के विवाह की कथा सम्बन्धित है)

द्वारिकापुरी में सत्राजित् नाम का एक य़ादव रहता था. उसने बहुत दिनों तक सूर्य नारायण भगवान का तप करके स्यमन्तक मणि प्राप्त की थी. उसके प्रभाव से शीघ्र ही सत्राजित् धनवान हो गया. स्यमन्तक मणि की नित्य पूजा अर्चना करने से उसे बीस मन सोना नित्य प्राप्त होता था. एक बार सत्राजित् स्यमन्तक मणि को गले में डालकर राजा उग्रसेन की सभा में गया. सूर्य के समान प्रकाश फैलाने वाली स्यमन्तक मणि की ओर सभी का ध्यान गया.

      एक बार श्री कृष्ण ने सत्राजित् से स्यमन्तक मणि राजा उग्रसेन को देने की बात कही क्योंकि राजा सब मनुष्यों में श्रेष्ठ है और जिस प्राणी के पास जो श्रेष्ठ वस्तु हो उसे राजा को देनी चाहिये. यह कथन सुनकर सत्राजित् उदास हो गया और श्रीकृष्ण का कथन उपने भाई प्रसेन से कहा. प्रसेन को यह सुनकर क्रोध आया और उसने वह मणि सत्राजित् से लेकर अपने गले में डाल ली. एक बार प्रसेन शिकार के लिये वन में गया, वहाँ एक पर्वत की गुफा के निकट पहुँचा, उस गुफा में एक शेर रहता था. शेर ने प्रसेन और उसके घोड़े को मारकर स्यमन्तक मणि को गुफा में डाल दिया. फिर जाम्बवान नाम के रीछ ने शेर को मार डाला और वह मणि लेकर अपनी गुफा में चला गया. मणि के प्रभाव से जाम्बवान की अँधेरी गुफा जगमगा उठी.

      इधर सत्राजित् को शक हुआ कि श्री कृष्ण ने उसके भाई प्रसेन को मारकर मणि प्राप्त कर ली है. जब श्रीकृष्ण को इस मिथ्या कलंक का पता लगा तो वह अपने कुछ साथियों के साथ प्रसेन को ढ़ूँढ़ने 9.

 

 

वन में गये. वन में जाकर पता लगा कि प्रसेन को शेर ने मार डाला है. शेर के पंजों के निशान देखते हुये वह एक गुफा के पास पहुँचे जहाँ जाम्बवान् ने शेर को मार डाला था. श्री कृष्ण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन सा जानवर है जिसने शेर को मार डाला. अपने साथियों को बाहर रोकर श्रीकृष्ण गुफा के अन्दर गये. गुफा में जाम्बवान् की पुत्री जाम्बवती स्यमन्तक मणि से खेल रही थी, मणि के प्रभाव से सारी गुफा जगमगा रही थी. सत्ताईस दिन तक श्रीकृष्ण और जाम्बवान् में युद्ध हुआ. अन्त में जाम्बवान् को बोध हुआ कि यह श्यामल स्वरूप श्री रामचन्द्र जी के ही अवतार हैं तब वह श्री कृष्ण के चरणों में गिर गया और प्रार्थना करने लगा. तब श्री कृष्ण ने अपने वहाँ आने का कारण बताया. जाम्बवान् ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री जाम्बवती और स्यमन्तक मणि श्रीकृष्ण को सौंप दी.

      जब श्री कृष्ण द्वारिका वापस आ गये तो राजा उग्रसेन ने सभा में सत्राजित् को बुलाकर मणि वापस कर दी. मणि को हाथ में लेकर सत्राजित् को अपराध बोध हुआ कि मैंने मिथ्या ही श्री कृष्ण पर कलंक लगाया. अपराध बोध से मुक्त होने के लिये सत्राजित् ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण से कर दिया और दहेज में स्यमन्तक मणि दे दी. श्री कृष्ण ने सत्यभामा को तो स्वीकार कर लिया लेकिन मणि सत्राजित् को ही वापस कर दी.

 

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Saturday, December 14, 2024

 

श्री कृष्ण- लक्ष्मणा विवाह

डॉ. मंजूश्री गर्ग

लक्ष्मणा मद्रास(द्रविड़) के राजा की पुत्री थीं. जब लक्ष्मणा विवाह के योग्य हुईं तो राजा ने पुत्री के विवाह के लिये स्वयंवर रचा. अनेक देशों के राजाओं के साथ श्री कृष्ण भी अर्जुन के साथ वहाँ पहुँचे. जब लक्ष्मणा स्वयंवर-स्थल में आईं तो श्री कृष्ण की मधुर मुस्कान पर मोहित होकर वरमाला उन्हीं को पहना दी. तब राजा ने लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण से कर दिया.

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Friday, December 13, 2024

 

श्री कृष्ण-भद्रा का विवाह

डॉ. मंजूश्री गर्ग

भद्रा भदावर देश के राजा की पुत्री थीं. जब भद्रा विवाह के योग्य हुईं तो राजा ने भद्रा के विवाह के लिये स्वयंवर रचा. स्वयंवर में भाग लेने अनेक राजा आये, श्री कृष्ण भी अर्जुन के साथ वहाँ गये. जब राजकुमारी वरमाला लिये हुये आयीं तो श्री कृष्ण की मेहिनी मूरत पर रीझ कर माला श्री कृष्ण के गले में डाल दी. तब राजा ने भद्रा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया.

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Thursday, December 12, 2024

 

 

श्री कृष्ण-सत्या का विवाह

डॉ. मंजूश्री गर्ग

सत्या अयोध्या के राजा नग्नजित् की पुत्री थीं. जब सत्या विवाह के योग्य हुईं तो नग्नजित् ने यह प्रण किया कि जो कोई मेरे सात बैलों को एक साथ नाथ देगा, उसी के साथ मैं अपनी पुत्री का विवाह करूँगा. अनेक राजाओं ने अयोध्या आकर सात बैलों को एक साथ नाथने का प्रयत्न किया, लेकिन असमर्थ रहे. एक बार श्री कृष्ण अर्जुन के साथ अयोध्या गये, वहाँ राजा नग्नजित् ने उनका बहुत आदर सत्कार किया. जब राजकुमारी सत्या ने श्री कृष्ण को देखा तो वह उन पर मुग्ध हो गयीं और मन ही मन श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की कामना करने लगीं. श्री कृष्ण ने राजा नग्नजित् के कहने पर उनकी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा के सात बैलों को एक साथ नाथ दिया. राजा नग्नजित् बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक सत्या का विवाह शास्त्र-विधि के अनुसार श्री कृष्ण से कर दिया. श्री कृष्ण जब सत्या के साथ द्वारिका आये तो सभी बहुत आनन्दित हुये.

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