Monday, December 16, 2024

 

श्री कृष्ण-सत्यभामा और श्री कृष्ण-जाम्बवती

के

विवाह की कथा

डॉ. मंजूश्री गर्ग

(स्यमन्तक मणि की कथा से ही श्री कृष्ण-सत्यभामा और श्री कृष्ण-जाम्बवती के विवाह की कथा सम्बन्धित है)

द्वारिकापुरी में सत्राजित् नाम का एक य़ादव रहता था. उसने बहुत दिनों तक सूर्य नारायण भगवान का तप करके स्यमन्तक मणि प्राप्त की थी. उसके प्रभाव से शीघ्र ही सत्राजित् धनवान हो गया. स्यमन्तक मणि की नित्य पूजा अर्चना करने से उसे बीस मन सोना नित्य प्राप्त होता था. एक बार सत्राजित् स्यमन्तक मणि को गले में डालकर राजा उग्रसेन की सभा में गया. सूर्य के समान प्रकाश फैलाने वाली स्यमन्तक मणि की ओर सभी का ध्यान गया.

      एक बार श्री कृष्ण ने सत्राजित् से स्यमन्तक मणि राजा उग्रसेन को देने की बात कही क्योंकि राजा सब मनुष्यों में श्रेष्ठ है और जिस प्राणी के पास जो श्रेष्ठ वस्तु हो उसे राजा को देनी चाहिये. यह कथन सुनकर सत्राजित् उदास हो गया और श्रीकृष्ण का कथन उपने भाई प्रसेन से कहा. प्रसेन को यह सुनकर क्रोध आया और उसने वह मणि सत्राजित् से लेकर अपने गले में डाल ली. एक बार प्रसेन शिकार के लिये वन में गया, वहाँ एक पर्वत की गुफा के निकट पहुँचा, उस गुफा में एक शेर रहता था. शेर ने प्रसेन और उसके घोड़े को मारकर स्यमन्तक मणि को गुफा में डाल दिया. फिर जाम्बवान नाम के रीछ ने शेर को मार डाला और वह मणि लेकर अपनी गुफा में चला गया. मणि के प्रभाव से जाम्बवान की अँधेरी गुफा जगमगा उठी.

      इधर सत्राजित् को शक हुआ कि श्री कृष्ण ने उसके भाई प्रसेन को मारकर मणि प्राप्त कर ली है. जब श्रीकृष्ण को इस मिथ्या कलंक का पता लगा तो वह अपने कुछ साथियों के साथ प्रसेन को ढ़ूँढ़ने 9.

 

 

वन में गये. वन में जाकर पता लगा कि प्रसेन को शेर ने मार डाला है. शेर के पंजों के निशान देखते हुये वह एक गुफा के पास पहुँचे जहाँ जाम्बवान् ने शेर को मार डाला था. श्री कृष्ण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन सा जानवर है जिसने शेर को मार डाला. अपने साथियों को बाहर रोकर श्रीकृष्ण गुफा के अन्दर गये. गुफा में जाम्बवान् की पुत्री जाम्बवती स्यमन्तक मणि से खेल रही थी, मणि के प्रभाव से सारी गुफा जगमगा रही थी. सत्ताईस दिन तक श्रीकृष्ण और जाम्बवान् में युद्ध हुआ. अन्त में जाम्बवान् को बोध हुआ कि यह श्यामल स्वरूप श्री रामचन्द्र जी के ही अवतार हैं तब वह श्री कृष्ण के चरणों में गिर गया और प्रार्थना करने लगा. तब श्री कृष्ण ने अपने वहाँ आने का कारण बताया. जाम्बवान् ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री जाम्बवती और स्यमन्तक मणि श्रीकृष्ण को सौंप दी.

      जब श्री कृष्ण द्वारिका वापस आ गये तो राजा उग्रसेन ने सभा में सत्राजित् को बुलाकर मणि वापस कर दी. मणि को हाथ में लेकर सत्राजित् को अपराध बोध हुआ कि मैंने मिथ्या ही श्री कृष्ण पर कलंक लगाया. अपराध बोध से मुक्त होने के लिये सत्राजित् ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण से कर दिया और दहेज में स्यमन्तक मणि दे दी. श्री कृष्ण ने सत्यभामा को तो स्वीकार कर लिया लेकिन मणि सत्राजित् को ही वापस कर दी.

 

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