Sunday, December 29, 2024

 

गंगा अवतरण की कथा

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

राजा हरिश्चन्द्र के वंश में ही राजा सगर हुये जिन्होंने धर्मपूर्वक राज्य करते हुये, अन्य राजाओं को जीतकर अपना राज्य बहुत बढ़ा लिया। उसके साठ हजार एक पुत्र थे। कुछ समय पश्चात् राजा सगर ने सौ अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। निन्यानवें यज्ञ तो भली-भाँति सम्पूर्ण हो गये परन्तु जब सौवाँ यज्ञ आरम्भ करके श्याम-कर्ण घोड़ा छोड़ा और अपने साठ हजार पुत्रों को उसकी रक्षा के लिये साथ किया, तब इन्द्र ने अपने इन्द्रासन चले जाने के भय से छल द्वारा घोड़े को पकड़कर कपिलमुनि के आश्रम में बाँध दिया और स्वयं इन्द्रलोक चले गये। जब राजकुमारों को अपना घोड़ा कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने सारा वृतान्त राजा सगर को सुनाकर आज्ञा माँगी कि यदि आप आज्ञा दें तो हम पृथ्वी को खोदकर घोड़ा ढ़ूँढ़ निकालें। राजा सगर ने आज्ञा दे दी, तब सगर पुत्रों ने पृथ्वी को इस प्रकार खोदा कि भरत-खण्ड में सात छोटे-छोटे समुद्र बन गये। जब वे घोड़े को ढ़ूँढ़ते हुये कपिलमुनि के आश्रम में पहुँचे, तो देखा कि कपिलमुनि आँख बंद करके तपस्या कर रहे हैं और घोड़ा उनके पीछे बँधा है। राजकुमारों की आवाज सुनकर कपिलमुनि की समाधि भंग हो गयी और मुनि ने राजकुमारों की ओर देखा, तो वे सब साठ हजार सगर पुत्र उसी जगह जलकर भस्म हो गये।

जब राजा सगर को बहुत दिनों तक अपने पुत्रों का कोई समाचार नहीं मिला तो राजा ने अपने पौत्र अंशुमान को अपने चाचाओं और घोड़े का पता लगाने के लिये भेजा। अंशुमान उन्हें ढ़ूँढ़ता हुआ कपिलमुनि के आश्रम पहुँचा, वहाँ उसने मुनि को प्रणाम कर उनकी बहुत भाँति से स्तुति की। तब कपिलमुनि प्रसन्न होकर अंशुमान से बोले-हे सगर पौत्र! तू अपना घोड़ा ले जा, लेकिन तेरे समस्त चाचा मेरी क्रोधाग्नि द्वारा भस्म हो चुके हैं। इसलिये जब गंगाजी पृथ्वी पर आवेंगी, तभी उनका उद्धार हो सकेगा।यह सुनकर अंशुमान कपिलमुनि को दण्डवत कर, श्याम कर्ण घोड़े को ले, पितामह राजा सगर के पास आये और सारा वृतान्त सुनाया। पहले तो राजा सगर को बहुत दुःख हुआ, फिर ईश्वर-इच्छा जानकर धैर्य धारण किया, सौंवा यज्ञ सम्पूर्ण कर राज्य अंशुमान को सौंप स्वयं वन को चले गये।

कुछ समय तक राज्य करने के बाद राजा अंशुमान ने राज्य अपने पुत्र दिलीप को सौंप दिया और स्वयं वन में जाकर अपने चाचाओं के उद्धार के हेतु पृथ्वी पर श्रीगंगाजी को अवतिरत करने के लिये श्रीहरिजी का तप करने लगे, वहीं राजा अंशुमान को मुक्ति प्राप्त हो गयी। तत्पश्चात् राजा दिलीप ने भी गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के हेतु तप करके अपना शरीर त्याग दिया, लेकिन गंगा जी तब भी पृथ्वी पर नहीं आयीं। राजा दिलीप के स्वर्गवास के समय उनके पुत्र भगीरथ बाल्यावस्था में ही थे। मित्रों के साथ खेलते हुये भगीरथ ने यह वृतान्त सुना कि अनके पिता और पितामह ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिये तप करते हुये अपना शरीर त्याग दिया है, तब उन्होंने प्रण किया कि जब तक मैं गंगाजी को पृथ्वी पर लाने में सफल नहीं हो जाऊंगा राज सिंहासन पर आरूढ़ नहीं होऊँगा। यह निश्चय कर तप करने के लिये वन में चले गये।

 

भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा जी ने उन्हें दर्शन देते हुये कहा- हे पुत्र! तेरी क्या इच्छा है.”भगीरथ ने उनकी दण्डवत परिक्रमा करके उत्तर दिया- हे माता! कपिलदेव की क्रोधाग्नि द्वारा मेरे साठ हजार पितामह जलकर भस्म हो गये हैं, इसलिये मेरी यह इच्छा है कि आप पृथ्वी पर पधार कर उनकी भस्म को अपने साथ बहाकर ले जायें, तो उन सबका उद्धार हो जाये। यह सुनकर गंगा जी बोलीं-

हे भगीरथ! मुझे पृथ्वी पर आना स्वीकार है, परन्तु मेरे आकाश से गिरने के वेग को न सह सकने के कारण पृथ्वी रसातल को चली जायेगी। इसलिये तुम किसी ऐसे शक्तिशाली देवता की आराधना करो, जो मेरे वेग को सह सके। तब भगीरथ ने महादेव जी को प्रसन्न करने के लिये तप किया। जब शंकर जी ने प्रसन्न होकर भगीरथ को दर्शन दिये, तो भगीरथ ने उनसे प्रार्थना की कि- हे कैलाश पति! आप कृपा कर गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण कीजिए जिससे मेरे पूर्वजों का उद्धार हो जाये। तब शंकर जी ने भगीरथ से कहा- हे भगीरथ! मुझे तुम्हारी बात स्वीकार है। जब गंगा जी पृथ्वी पर आने लगीं तब शंकर जी ने उस जल को अपनी जटाओं में ही समा लिया। तत्पश्चात् भगीरथ ने शंकर जी से पुनः विनती की, तब शंकर जी ने भगीरथ को एक रथ देते हुये कहा- हे भगीरथ! तू इस रथ पर सवार होकर आगे-आगे चल, तब गंगा जी तेरे पीछे-पीछे चलेंगी।यह कहकर शंकर जी ने अपने सिर की जटाओं में से जल की एक छोटी धारा पृथ्वी पर गिरा दी। तब भगीरथ शंकर जी के दिये हुये रथ पर बैठकर वहाँ चल दिये जहाँ उसके पूर्वजों की भस्म पड़ी हुई थी। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा जी ने उसके साठ हजार पूर्वजों का उद्धार कर दिया और गंगा जी सागर में मिल गयीं। कपिलमुनि का आश्रम गंगा सागर महातीर्थ का पुण्य स्थल बन गया, जहाँ प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन महापर्व का आयोजन होता है।

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