एक बार आ जाओ कान्हा!
मैं राधा नहीं, ना ही कोई गोपी।
फिर भी अपनी चरण-रज बना लो कान्हा!
भूल से चंदन समझ, मस्तक पे लगा लो कान्हा!
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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