तेरी नजरों में सँवरते रहे हम
तेरी बाँहों में पिघलते रहे हम।
नित अस्तित्व अपना खोकर
तुझ में ही ढ़लते रहे हम।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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