Tuesday, December 24, 2024

 

श्रीकृष्ण और सुदामा की कथा

डॉ. मंजूश्री गर्ग

श्रीकृष्ण और सुदामा संदीपन ऋषि के आश्रम(उज्जैन) में एक साथ विद्या अध्ययन करते थे. एक बार गुरू पत्नी ने श्रीकृष्ण और सुदामा को वन में ईंधन के लिये लकड़ी लेने भेजा, साथ में कलेवा(नाश्ता) के लिये चने दिये. दोनों का कलेवा सुदामा के ही पास था. वन से लौटते समय अचानक तेज आँधी-बारिश आने के कारण रात दोनों को वन में बितानी पड़ी. सुदामा चुपचाप अकेले चने खाते रहे, जब श्रीकृष्ण ने सुदामा से कहा, हे भाई! तुम क्या खा रहे हो, यदि तुम्हारे पास कोई खाने की वस्तु हो तो हमें भी दो.तब सुदामा ने झूठ बोला कि मेरे पास खाने की कोई वस्तु नहीं है, मेरे दाँत तो ठंड के कारण कटकटा रहे हैं. इस प्रकार सुदामा ने श्रीकृष्ण के हिस्से का कलेवा(चने) भी स्वयं खा लिया. परिणाम स्वरूप सुदामा को भविष्य में घोर दरिद्रता का सामना करना पड़ा.

एक बार सुदामा के परिवार को दरिद्रता के कारण दो दिन बिना आहार के ही बिताने पड़े. तीसरे दिन उनके दो छोटे बच्चे भूख से व्याकुल होकर रोने लगे. तब सुदामा की पत्नी सुशीला ने विनती करते हुये अपने पति से कहा, हे नाथ! लक्ष्मीपति श्रीद्वारिकानाथ आपके परममित्र और गुरू-भाई हैं. यदि आप उनके पास जायें तो वो आपकी दरिद्रता दूर करने का अवश्य प्रयास करेंगे. सुदामा ने बहुत मना किया, लेकिन सुशीला के बार-बार आग्रह करने पर सुदामा अपनी पत्नी द्वारा दिये चावलों की पोटली बगल में दबाकर श्रीकृष्ण के दर्शन की अभिलाषा मन में लिये वैभवपूर्ण द्वारिका पुरी को चल दिये.

सुदामा जब राजमहल के पास पहुँचे तो द्वारपाल ने उन्हें द्वार पर रोक दिया और श्रीकृष्ण को समाचार कहा कि एक अत्यन्त निर्धन ब्राह्मण आपसे मिलने आया है, उसका नाम सुदामा है और आपको अपना मित्र बताता है. सुदामा का नाम सुनकर श्रीकृष्ण तुरन्त ही सिंहासन से उठकर स्वयं सुदामा से मिलने दौड़ पड़े, सुदामा को सहर्ष गले से लगाया ससम्मान राजभवन में अन्दर लाकर सिंहासन पर बैठाया. स्वयं अपने हाथों से सुदामा के चरण धोये और रूक्मिणी, आदि आठों पटरानियों के साथ मिलकर आदर-सत्कार किया. सुदामा संकोच वश भेंट स्वरूप लाई चावलों की पोटली श्रीकृष्ण को नहीं दे रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने सुदामा के मन का भाव जानकर स्वयं ही चावलों की पोटली ले ली और बहुत ही स्नेह सहित चावल खाये. यद्यपि सुदामा के मन में धन की कोई लालसा नहीं थी, फिर भी श्रीकृष्ण ने सुदामा की दरिद्रता दूर कर सुदामा के घर का जीर्णोद्धार किया. धन-धान्य व सभी सुख-सुविधाओं से सुदामा का घर भर दिया.

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