Sunday, December 8, 2024


एक बार आ जाओ कान्हा!

मैं राधा नहीं, ना ही कोई गोपी।

फिर भी अपनी चरण-रज बना लो कान्हा!

भूल से चंदन समझ, मस्तक पे लगा लो कान्हा!


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

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