Monday, December 23, 2024


श्रीकृष्ण के ह्रदय पर भृगु ऋषि का चिह्न

डॉ. मंजूश्री गर्ग

एक बार अन्य ऋषियों के कहने पर भृगु ऋषि ब्रह्मा, बिष्णु, महेश की परीक्षा लेने गये कि तीनों में कौन सबसे बड़ा है. पहले भृगुजी ब्रह्मा जी की सभा में गये और बिना दण्डवत किये ही बैठ गये. ब्रह्मा जी बहुत क्रोधित हुये, किन्तु इन्हें अपना पुत्र समझकर कुछ नहीं कहा. फिर भृगु जी शिवजी के कैलाश पर्वत गये, शिवजी भृगु जी से मिलने के लिये हाथ फैलाकर खड़े हो गये, लेकिन भृगु जी यह कहकर दूर ही खड़े रहे कि तुम धर्म-कर्म छोड़कर मरघट में बैठे रहते हो. अतः मुझे स्पर्श मत करो. यह सुनकर शिवजी को अत्यन्त क्रोध आया और वे त्रिशूल लेकर मारने के लिये दौड़े. उस समय पार्वती जी ने यह कहकर शिवजी को शांत किया कि भृगु आपके छोटे भाई हैं, इसलिये इनका अपराध क्षमा करो. तब भृगुजी बैकुंठ में श्रीबिष्णु भगवान के पास गये जहाँ श्री हरि रत्न-जड़ित शैय्या पर सोये हुये थे. भृगु जी ने अपने बायें चरण से उनके वक्षस्थल पर प्रहार किया, चरण-प्रहार लगते ही श्री हरि उठकर बैठ गये और अपने कर-कमलों से भृगु जी के चरणों को पकड़कर कहने लगे, हे मुनि श्रेष्ठ! आपके चरण कमल अति कोमल हैं और मेरा ह्रदय वज्र के समान कठोर है, अतः आपको कहीं चोट तो नहीं लगी. भगवन्! यदि मुझे आपके आगमन का समाचार मिला होता तो मैं स्वयं बढ़कर आपकी अगवानी करता. अब आपके चरण-चिह्न को मैं सदैव अपने ह्रदय पर धारण किये रहूँगा. यद्यपि लक्ष्मी जी क्रुद्ध होकर शाप भी देना चाहती थीं किंतु श्री हरि के भय से कुछ न कह सकीं. तब भृगु ऋषि ने अन्य ऋषिमुनियों को सारा वृतान्त सुनाते हुये कहा कि श्री नारायण से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई नहीं है.

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