जितना चाहो सुलझाना, उलझेंगे उतने ही।
रिश्ते जो सुलझे नहीं, छोड़ दो यूँ ही अनसुलझे।
समय बीतते कम हो जायेंगी मन की गाँठें।
जैसे किसी धागे की गाँठ में भी पिर जाते हैं मोती।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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