डॉ0 मंजूश्री गर्ग
हारसिंगार को शैफाली और
पारिजात नाम से भी जाना जाता है. समुद्र-मंथन के समय चौदह रत्नों में से एक
पारिजात वृक्ष था, जिसे देवताओं को दिया गया. देवताओं के राजा इन्द्र ने पारिजात
वृक्ष को स्वर्ग के नंदनवन में लगा दिया. द्वापर युग में रानी सत्यभामा के कहने पर
श्री कृष्ण हारसिंगार-वृक्ष को पृथ्वी पर लाये.
हारसिंगार का वृक्ष शंकुकार
होता है और लम्बाई दस से बारह फुट तक होती है, फैलाव आम के वृक्ष के जैसे होता है.
इसकी पत्तियाँ भी शंकुकार और खुरदुरी होती हैं. पत्तियों की लम्बाई तीन से चार इंच
और चौड़ाई दो से तीन इंच तक होती है. अगस्त-सितम्बर के महीने में हारसिंगार में
कलियाँ आनी शुरू हो जाती हैं. ये कलियाँ शाम के समय खिलनी शुरू होती हैं और आसपास
का सारा वातावरण सुगंध से सरोबार हो जाता है. हारसिंगार का फूल सुगंध के साथ-साथ
देखने में भी बहुत सुंदर लगता है-सफेद पंखुरियाँ और नारंगी डंडी. सुबह होते-होते
फूल झरने लगते हैं. पेड़ के नीचे देखो तो फूलों का कालीन बिछा मिलता है. हारसिंगार
के फूल चाहिये तो पेड़ के नीचे आँचल फैलाकर खड़े हो जाओ. आपका आँचल महकते
रंग-बिरंगे फूलों से भर जायेगा. हारसिंगार के फूलों की डंडी से प्राकृतिक नारंगी
रंग बनता है. हारसिंगार के फल चपटे होते हैं, जिनके अन्दर बीज होता है.
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