फुलौरा दौज
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
फागुन मास में शुक्ल पक्ष की दौज फुलौरा दौज
कहलाती है. सारा वातावरण बसंत के रंग में सरोबार है. होली की तैय्यारी चल रही है.
शहर के किसी बड़े चौक पर होलिका दहन के लिये होली की स्थापना की गयी
है.सूखे लक्कड़ एकत्र किये जा रहे हैं. घर पर माँ, बहनें, भाभियाँ मिलकर बुरकले
बनाने में व्यस्त हैं, ताकि होली के दिन होली की पूजा के समय बुरकलों की माला
होलिका को पहना सकें. माला में पेन्डेन्ट की जगह गोबर की ही ढ़ाल बनाकर पिरो दी
जाती है. लेकिन इन सबसे पहले होलिका के स्वागत के लिये फुलौरा दौज के दिन
बालिकाओं की टोली हाथ में फूलों भरी टोकरी लेकर सुबह-सबेरे निकल पड़ती हैं. पहले होलिका
दहन के स्थान पर फूल चढ़ाती हैं, फिर आकर अपने घर के आँगन में फूलों की
पंखुरियाँ सजाती हैं. फिर आस-पास मित्र घरों में व सगे-संबंधियों के घर जा-जाकर
उनके आँगन में फूलों की पंखुरियाँ सजा देती हैं. बड़े बालिकाओं को उपहार देते हैं.
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