रूद्राक्ष
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
रूद्र(शिवजी)-अक्ष के
अश्रु-बिन्दु से उत्पन्न होने के कारण इसका नाम रूद्राक्ष पड़ा. कहा जाता है कि
देवों के विजयोल्लास में शिवजी भी हँसने लगे और उनकी आँखों से चार आँसू की बूँदें
टपक पड़ी. इन्हीं से रूद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई, जिस क्षेत्र में रूद्राक्ष
वृक्ष की उत्पत्ति हुई उसे ‘रूद्राक्षारण्य’ कहा जाता है. यह स्थान नेपाल में पंचकोशी
क्षेत्र के अन्तर्गत जनकपुर धाम से दक्षिण और जयनगर से उत्तर(जहाँ जलेश्वर महादेव
हैं) में स्थित है. इसके अतिरिक्त भारत के दार्जिलिंग, कोंकण, मैसूर और केरल
क्षेत्रों में तथा इंडोनेशिया एवमं जावा में भी रूद्राक्ष के वृक्ष पाये जाते हैं.
चने के बराबर रूद्राक्ष
निम्न कोटि का होता है. आँवले के आकार का रूद्राक्ष समस्त अरिष्टों का नाश करता
है. बेर के बराबर रूद्राक्ष लोक में उत्तम सुख-सौभाग्य एवम् समृद्धि देने वाला
होता है. जिस रूद्राक्ष में डोरा पिरोने के लिये छेद अपने आप बना होता है वह उत्तम
रूद्राक्ष होता है और जिस रूद्राक्ष में मनुष्य छेद करते हैं वह मध्यम श्रेणी का
होता है. रूद्राक्ष के ऊपर एक गहरी रेखा बनी होती है इसे मुख कहते हैं. रूद्राक्ष
एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक होते हैं. असली रूद्राक्ष की पहचान करनी हो तो है
उसे दो ताँबे के तारो के बीच रख कर देखना चाहिये. रूद्राक्ष ताँबे के तारों के बीच
फिरकनी की तरह नाचने लगता है. दूसरे असली रूद्राक्ष दूध या पानी में डूबता नहीं
है.
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