प्रिया के बिन अपनी उदासी
को, अपने अकेलेपन को कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में अभिव्यक्त किया है-
तुम बिन हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है।
रात की उदासी को याद संग खेला है,
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है।
औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है,
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
कुमार
विश्वास
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