प्रायः बच्चे अज्ञानवश ऐसी
वस्तु की जिद कर बैठते हैं जिनका पूरा करना माँ-बाप के लिए असम्भव-सा हो जाता है.
इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने, श्रीकृष्ण के चंदा को खिलौने के रूप में चाह
करने पर जसोदा मैया किस तरह उन्हें मनाती हैं,
प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
कहति जसोदा कौन विधि, समझाऊँ अब कान्ह।
भूलि दिखायो चंद मैं, ताहि कहत हरि खान।
यहै देत नित माखन मोको। छिन छिन देति तात सो तोको
जो श्याम तुम चंद को खैहो। बहुरो फिर माखन कह पैहो?
देखत रहौ खिलौना चंदा। हठ नहिं कीजै बाल गोविंदा
पा लागौ हठ अधिक न कीजै। मैं बलि, रिसहि रिसहि तन छीजै।
जसुमति कहति कहा धौं कीजै। माँगत चंद कहाँ ते दीजै।
तब जसुमति इक जलपुट लीनो। कर मैं लै तेहि ऊँचों कीनो
ऐसे कहि स्यामै बहरावै। आव चंद, तोहि लाल बुलावै
हाथ लिए तेहि खेलत रहिए। नैकु नहीं धारनी पै धारिए।
ब्रजवासी
दास
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