Wednesday, April 25, 2018




बाबुल.......

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

बाबुल तेरे अँगना की
हम थीं सोन चिरैया रे
क्यूँ कनक-तीलियों में
कैद किया।

जून महीने में
नहीं यहाँ अमराईयाँ
कमरे में कैद
जिंदगानी रे।

अब के सावन में
बाबुल पास बुला लेना                   
बरसों बीत गये
झूला नहीं झूले आँगन में।

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