हिन्दी साहित्य
Saturday, October 13, 2018
गुनहगार हूँ मैं तुम्हारा
चुराया है तुमको तुम्हीं से.
जो चाहे सजा दे देना
कबूल होगी सब मुझको.
बस दूर अपने से जाने को
ना कहना कभी मुझको.
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment