हिन्दी साहित्य
Thursday, October 25, 2018
दूर तुमसे हूँ प्रिये
!
मिठास तुम्हारी बनी रहे।
मैं खारा सागर,
तुम नदी की मीठी धार।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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