Saturday, October 20, 2018



गीत
डॉ0 मंजूश्री गर्ग

शरद सुहावनि आई रे
नया रंग भर लाई रे।

पत्तों पे हरियाली है
कली-कली मुस्काई है,
बादल उड़ते-फिरते रहते
कभी धूप, कभी छाँव है।

नदिया की धारा को देखो
मन्द-मन्द सी बहती है,
क्यूँ तेरे मेरे मन में
उथल-पुथल सी होती है।


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