हिन्दी साहित्य
Wednesday, May 15, 2019
एक बार आ जाओ कान्हा
!
मैं राधा नहीं, ना ही कोई गोपी।
फिर भी अपनी चरण-रज बना लो कान्हा
!
भूल से चंदन समझ, मस्तक पे लगा लो कान्हा
!
डॉ. मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment