Saturday, May 14, 2022


हो आदि शक्ति तुम ही

 

निराकार हो या साकार तुम,

हो आदि शक्ति तुम ही।

नदियाँ इठलाती चलतीं,

फलती-फूलती प्रकृति तुम से ही।

गृह-नक्षत्र रहते घूमते,

चाँद चाँदनी बरसाता तुम से ही।

लीन प्रलय में होकर एक दिन,

नव जीवन सब पाते तुम से ही।



         डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

  

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