हिन्दी साहित्य
Thursday, May 26, 2022
ना धूप, ना हवा,
ना बूँदें बारिश की।
बेचैन करता है, ये
शामियाना बादलों की।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment