Thursday, May 26, 2022


 

एक बार आ जाओ कान्हा!

मैं राधा नहीं, ना ही कोई गोपी।

फिर भी अपनी चरण-रज बना लो कान्हा!

भूल से चंदन समझ, मस्तक पे लगा लो कान्हा!


                                                डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

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