देवदार
डॉ. मंजूश्री गर्ग
देवदार पर्वतीय श्रृंखलाओं में पाया जाने वाला
कॉनिफर(शंकु) जाति का बहुत ही सुंदर व मजबूत वृक्ष है. देवदार शब्द दो शब्दों से
मिलकर बना है देव(देवता) और दारू(लकड़ी). देवदार का स्थानीय नाम सीडरस दियोदारा है. स्थानीय भाषा में इसे दियार, केलो
भी कहा जाता है. भारत में गढ़वाल, कुमाऊं, असम, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में देवदार
के घने जंगल हैं.
देवदार की पत्तियाँ पतली, नुकीली व चमकदार होती
हैं, वो सदा हरी रहती हैं. इनकी आयु दो-तीन साल होती है. शंकु जाति का होने के
कारण शीर्ष पर शंकु के आकार का ही होता है किंतु कभी-कभी बर्फ गिरने से या तेज हवा
के चलने से चपटा हो जाता है. पूर्ण वृक्ष की लम्बाई प्रायः 40(चालीस)मी. से
60(साठ)मी. तक होती है और वृक्ष की मोटाई 4मी. से 6मी. तक होती है. वृक्ष की छाल
पतली हरी होती है जो धीरे-धीरे गहरी भूरी हो जाती है. वृक्ष के तने की (Horizontal) काट देखने पर बहुत ही सुंदर लगती है, इस पर
पेंटिंग्स भी बनाई जाती हैं. वातावरण अनुकूल होने पर बड़े वृक्षों के नीचे नये
पौधे निकल आते हैं.
मान्यता है कि जब प्रलय के समय सारी सृष्टि
जलमग्न हो गयी थी तब भी दो-चार देवदार के वृक्ष बचे हुये थे. जैसा कि जयशंकर
प्रसाद ने कामायनी में भी लिखा है-
उसी तपस्वी से
लंबे थे
देवदारू दो चार
खड़े।
हुए हिम-धवल,
जैसे पत्थर
बनकर ठिठुरे रहे अड़े।
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