शिरिष के फूल
डॉ. मंजूश्री गर्ग
रंग बिखेरे, जग निखरे, जब खिले प्यारे शिरिष।
गाँव तक चलकर शहर, जब देखने पहुँचे
शिरिष।।
कल्पना रमानी
सूखे बीज बजे
झाँझर से
लम्बी-लम्बी
फलियों में।
सघन छाँव और भाव
अनूठे
भरता शिरिष नित
कलियों में।।
ऋता शेखर मधु
शिरिष तीव्र गति से बढ़ने वाला मध्यम आकार का सघन छायादार
वृक्ष है. इसकी टहनियाँ चारों ओर फैली रहती हैं. शिरिष का वृक्ष भारत के गर्म
प्रदेशों में 8000 फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है. शिरिष के वृक्ष तीन प्रकार के
होते हैं- 1.लाल शिरिष, 2.पीला शिरिष, 3.सफेद शिरिष.
शिरिष के वृक्ष का तना भूरे रंग का कटा-फटा होता है, इसके अंदर की छाल
लाल, कड़ी, खुरदुरी और मध्य
में सफेद होती है जिसमें सैपोनिन, टैनिन नाम के रालीय तत्व पाये जाते हैं. इसीलिये इसकी छाल
से उत्पन्न होने वाले लाल एवम् भूरे रंग के चिपचिपे पदार्थ को अरबी गोंद के स्थान
पर प्रयोग किया जाता है.
शिरिष के वृक्ष के पत्ते एक से लेकर ड़ेढ़ इंच तक लम्बे, इमली के पत्ते
जैसे, लेकिन आकार में कुछ बड़े होते हैं. बसंत के आगमन के साथ ही शिरिष के वृक्ष पर
कोमल, कमनीय, भीनी-भीनी सुगंध वाले पीले, लाल व सफेद फूल खिलने लगते हैं. फूल जितने कोमल होते हैं, बीज उतने ही कठोर
होते हैं. शीत ऋतु में 4 से 12 इंच तक लंबी, चपटी, पतली एवम् भूरे रंग की फलियाँ बन जाती
हैं, जिनमें सामान्यतः
6 से 22 सख्त बीज होते हैं. शीत ऋतु में पत्तियों के झड़ने के साथ ही ये फलियाँ
सूखकर करारी हो जाती हैं. हवा से उत्तेजित फलियों के खड़खड़ाने से उत्पन्न हुई
आवाज के कारण अंग्रेजी में इसे सिजलिंग ट्री या फ्राई वुड ट्री भी कहा जाता है.
शिरिष के वृक्ष की जड़ धरती की ऊपरी सतह पर फैलती है जिसके
कारण अन्य पेड़-पौधे नहीं पनप पाते, किन्तु कॉफी और चाय के पौधों के लिये
इसकी घनी छाया अत्यन्त लाभकारी है. इसकी जड़ें मिट्टी संरक्षण के लिये अत्यन्त
उपयोगी हैं.
वनस्पति जगत के वैज्ञानिकों ने सुप्रसिद्ध इटालियन
वैज्ञानिक “अल्बीजी” के सम्मान में शिरिष को “अल्बीजिया लेबेक” का नाम दिया है.
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