Friday, September 8, 2017

भारतेन्दुजी के जन्म-दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें


भारतेन्दु हरिश्चन्द्र



डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि-  9 सितम्बर, सन् 1850 ई0(वाराणसी)
पुण्य-तिथि-  7 जनवरी, सन् 1885 ई0(वाराणसी)

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एक समन्यववादी साहित्यकार थे. अतः उन्होंने कविता के क्षेत्र में ब्रजभाषा को ही प्रमुख स्थान दिया और गद्य के क्षेत्र मे खड़ी बोली की अनेक विधाओं को समृद्ध बनाया. भारतेन्दु जी अपने समय के उर्दू शायरों से भी प्रभावित हुये जो उर्दू शायरी में सहज, सरल, स्वाभाविक हिन्दी भाषा के शब्दों का प्रयोग कर रहे थे. शायर अकबर इलाहाबादी ने उर्दू शायरी को हिन्दी भाषा के साथ जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया. इसी के परिणाम स्वरूप आगे चलकर हिन्दी पद्य में ब्रजभाषा की जगह खड़ी बोली ने स्थान ग्रहण किया. भारतेन्दु जी ने अपनी मूल कविता जो मुख्यतः भक्तिपरक है ब्रजभाषा में ही लिखी लेकिन अपनी मुकरियों व गजलों में खड़ी बोली का ही प्रयोग किया.
उदाहरण-
  
धन लेकर कुछ काम न आवे,
ऊँची-नीची राह दिखावे।
समय पड़े साधे गूँगी
क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि चुंगी।

भारतेन्दु जी ने गजलें रसा उपनाम से लिखी.
उदाहरण-
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में.
तुझे दिल की लगी मेरी भी अब ऐ यार होली में.

नहीं यह है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में.

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जाने-मन त्यौहार होली में.

है रंगत जाफरानी रूख अबीरी कुमकुमे कुच है
बने हो खुद ही होली तुम भी ऐ दिलदार होली में.

'रसा' गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी
नशीली आँख दिखलाकर करो सरशार होली में.


भारतेन्दु जी सच्चे देशभक्त थे उनकी रचनाओं में भारत के अतीत का स्वर्णिम गौरवपूर्ण वर्णन देखने को मिलता है. वहीं भारतेन्दु जी ने हिन्दी साहित्य को खड़ी बोली की राह दिखलाकर अविस्मरणीय कार्य किया जो स्वतन्त्रता संग्राम मे भी बहुत सहायक हुई. आगे चलकर स्वतन्त्र भारत में खड़ी बोली हिन्दी ने मातृभाषा का पद प्राप्त किया. भारतेन्दु जी ने मातृभाषा हिन्दी के लिये एक काव्यात्मक भाषण लिखा था जिसकी दो पंक्तियाँ आज भी मातृभाषा हिन्दी के लिये सर्वत्र उल्लेखनीय बन गयी हैं-
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।









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