बिहारी लाल और बिहारी
सतसई
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
बिहारी लाल संसार के उन रससिद्ध कवियों में से एक हैं, जो अपनी एक बिहारी
सतसई रचना के कारण जगत् प्रसिद्ध हैं. हिन्दी साहित्य में तो श्रृंगार सतसइयों
की परम्परा का श्रीगणेश बिहारी सतसई से ही माना जाता है. हिन्दी के प्रबन्ध
काव्यों के क्षेत्र में रामचरितमानस (तुलसीदास कृत) की जो प्रतिष्ठा है, वही
प्रतिष्ठा मुक्तक रचना के क्षेत्र में बिहारी सतसई को प्राप्त हुई है. बिहारी सतसई
की टीका आलोचना के रूप में जितना साहित्य आज तक लिखा गया है, उससे बिहारी सम्बन्धी
एक अलग ही वाड्मय बन गया है.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के
इतिहास मे बिहारी लाल की रचना के विषय में कहा है- यदि प्रबन्ध काव्य एक
विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक काव्य एक चुना हुआ गुलदस्ता है. संस्कृत के प्रसिद्ध
मुक्तककार अमरूक के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उनका एक-एक श्लोक सौ-सौ प्रबन्ध
काव्यों का सा रस उत्पन्न कर सकता है. हिन्दी में बिहारी लाल भी ऐसे ही मुक्तककार हैं, जिनकी सतसई पर केवल भारतीय ही
नहीं, विश्व भर के लोग मुग्ध हैं. ----------------मुक्तक कविता में जो गुण होना
चाहिये वह बिहारी के दोहों में अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचा है, इसमें संदेह
नहीं. रामचन्द्र शुक्ल ने मुक्तक
रचना की कसौटी निर्धारित करते हुये लिखा है- जिस कवि में कल्पना की समाहार
शक्ति और भाषा की समास शक्ति जितनी भी अधिक होगी, उतना ही वह मुक्तक की रचना में
सफल होगा. और बिहारी सतसई में ये दोनों गुण भरपूर मात्रा में मिलते हैं.
बिहारी सतसई में कल्पना की
समाहार शक्ति-
मुक्तक कवि को सूत्र रूप में बहुत कुछ कहना होता
है, प्रसंग की कल्पना पाठक-श्रोता पर छोड़नी होती है. अनर्गल बातें काट-छाँट कर
अलग करनी होती हैं और कल्पना की समाहार शक्ति द्वारा रस का सार उपस्थित करना होता
है. इस कसौटी पर बिहारी के दोहे खरे उतरते हैं.
उदाहरण-
डिगत पानि डिगुलास गिरि, लखि सब ब्रज बेहाल।
कम्प किसोरी दरस कै, खरै लजाने लाल।।
उपर्युक्त दोहे में कवि ने श्रीकृष्ण द्वारा
गोवर्धन पर्वत धारण करने का प्रसंग वर्णित किया है. श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर
गोवर्धन पर्वत उठा रखा है, जिसके नीचे सब ब्रजवासी खड़े हैं. कृष्ण की नजर राधा से
मिलती है और उनके हाथ से पर्वत डगमगाने लगता है, जिसे देखकर सब ब्रजवासी भयभीत
होते हैं. श्रीकृष्ण को जब इस बात का ज्ञान होता है तो वे लजा जाते हैं. इतने लंबे
प्रसंग को एक दोहे में रखना कल्पना की समाहार शक्ति का सशक्त प्रमाण है. ऐसे ही-
दृग उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर चिर प्रीति।
परत गाँठ दुरजन हिय, दई नई यह रीति।।
प्रस्तुत दोहे में प्रेमी-प्रेमिका के परस्पर
नयनों का मिलना, उनमें प्रेमभाव उत्पन्न होना और प्रेमभाव उत्पन्न होने के कारण
प्रेमी-
प्रेमिका में तो आपस में प्रीति उत्पन्न होती
है, किन्तु परिवार के अन्य सदस्यों से नाता टूट जाता है. यह पूरी घटना न जाने
कितने समय में घटित हुई होगी, किन्तु कवि ने अपनी कल्पना की समाहार शक्ति पूरी
घटना को एक ही दोहे में वर्णित कर दिया है.
ऐसे ही-
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करैं, भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाय।।
प्रस्तुत दोहे में भी एक विस्तृत आख्यान है.
राधा श्रीकृष्ण की मुरली छुपाकर रख लेती हैं, ताकि राधा श्रीकृष्ण से अधिक बातें
कर सकें. जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली न मिलने पर राधा से पूछते हैं तो राधा मना कर
देती हैं कि हमारे पास नहीं है. यह जानकर श्रीकृष्ण वापस जाने लगते हैं, श्रीकृष्ण
को वापस जाते देखकर राधाजी भौंहो से मुस्कुराने लगती हैं, जिससे श्रीकृष्ण समझ
जाते हैं कि जरूर मुरली राधा के ही पास है. ऐसे ही-
मंगल बिन्दु सुरंग मुख, ससि केसर आड़ गुरू।
इक नारि लहि संग रसमय, किय लोचन-लगत।।
नायिका के चन्द्रमा के समान मुख, उस पर लाल
बिन्दु और केसर के आड़े तिलक ने नायक के नेत्रों को रसमय कर दिया है. जिस प्रकार
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चन्द्रमा, मंगल और ब्रहस्पति एक ही राशि पर आते हैं,
तो घनघोर वर्षा होती है.
उपर्युक्त उदाहरण बिहारी की कल्पना की समाहार शक्ति
के सशक्त प्रमाण हैं. कहना न होगा कि एक-एक दोहे में इतना अधिक भाव गाम्भीर्य व
चमत्कार है कि उन्हें रंगमंच पर भी अभिनीत किया जा सकता है.
बिहारी सतसई में भाषा की
समास-शक्ति-
कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समास शक्ति
दोनों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है.
लम्बे-चौड़े आख्यान को 48 मात्राओं के छोटे से दोहे में भाषा की समास शक्ति के
माध्यम से ही समाहित किया जा सकता है. बिहारी की भाषा की समास शक्ति भी अद्भुत थी.
उदाहरण-
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सब बात।।
प्रस्तुत दोहे में कवि ने नायक-नायिका के
वार्तालाप का चित्र अभिव्यक्त किया है. एक-एक शब्द नगीने की तरह जड़ा है और एक-एक
वाक्य को अभिव्यक्त कर रहा है, जहाँ नायक-नायिका मौन रहकर भी भरे भवन में नयनों के
संकेतों से घंटों वार्तालाप करते हैं. भाषा की सामासिक शब्दावली के माध्यम से ही
कवि भाव चित्र प्रस्तुत करने में सफल हुये हैं. अन्य अदाहरण-
सीस मुकुट, कटि काछन, कर मुरली, उर माल।
इहि मानक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।।
प्रस्तुत दोहे में कवि ने श्रीकृष्ण का
मूर्तिमान चित्र प्रस्तुत किया है.
कल्पना की समाहार शक्ति व भाषा की समास शक्ति के
बल पर बिहारी ने अपने दोहों में अद्भुत भाव भरे हैं, इसीलिये उनके दोहों के लिये
कहा जाता है-
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर।।
बिहारी लाल के दोहों की प्रशंसा करते हुये सर
जार्ज अब्राह्म ग्रिर्यसन लिखते हैं-
“Bihari Lal has been called the Thompson
of India, but I do not think that either he or any of his brother poets of
Hindustan can be usefully compared with any western poet. I know nothing like
his verses in any European Language.”
इसी प्रकार एडविन ग्रीव्ज कहते हैं- “Bihari is a
remarkably clever manipulators of words and having said this you have said all
about him.”
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