Wednesday, September 20, 2017


हिन्दी गजल में रसाभिव्यक्ति
डॉ0 मंजूश्री गर्ग

                          
हिन्दी गजल की मुख्य संवेदनायें सामाजिक व राजनीतिक विसंगतियों से जुड़ी हैं जो कि हास्य-व्यंग्य के रस में डुबोकर अभिव्यक्त की गयी हैं. इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषी गजलकारों ने अपनी गजलों में श्रृंगार रस से परिपूर्ण गजलें भी कही हैं जो कि गजलों का पहले मुख्य विषय रहा था. हिन्दी गजलों में हमें सभी रसों की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है.

1.श्रृंगार रस-
श्रृंगार रस में प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी के पारस्परिक प्रेम को अभिव्यक्त किया जाता है. इसके दो भेद हैं-संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार. हिन्दी गजलों में श्रृंगार रस के दोनों ही भेद देखने को मिलते हैं.

संयोग श्रृंगार-   जब प्रेमी प्रेमिका के बहुआयामी रूप का वर्णन करता है तो संयोग श्रृंगार रस की व्युत्पत्ति होती है-
नाजुके लब की नाजुकी जनाब क्या कहिए?
तुम्हारा चेहरा लग रहा गुलाब क्या कहिए?
                                 अनन्त सक्सैना 

ऐसे ही जब प्रेमी-प्रेमिका के बीच कुछ दूरी होती है और प्रेमी-प्रेमिका अपना प्रेम प्रेम भरी मुस्कुराहट के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं तो वहाँ अनूठा स्पर्श संयोग श्रृंगार रस झलकता है-
बैठकर मुस्का रही हो तुम
सच बहुत ही भा रही हो तुम।
बाँसुरी विस्मित समर्पित सी
गीत मेरा गा रही हो तुम।
एक अभिनव प्रेम का दर्शन
दृष्टि से समझा रही हो तुम।
                     डॉ0 रोहिताश्व अस्थाना

गजल की प्रस्तुत पंक्तियों में शायर ने संयोग के पलों में नायक के द्वारा नायिका से की गयी याचना को अभिव्यक्त किया है-

बात जो दिल ने कही है अब उसे तुम बोल दो
फूल से नाजुक लबों को अब जरा तुम खोल दो।
जिन्दगी अब तक हमारी रंग रहित है नीर सी
प्यार का रंग प्यार से इसमें सदा को घोल दो।
                                     नित्यानंद तुषार

वियोग श्रृंगार-   हिन्दी गजलों में गजलकारों ने वियोग के पलों में नायक-नायिका के मन में उठने वाले मनोभावों की भी सुन्दर अभिव्यक्ति की है. बरखा के दिनों में वियोगियों को एक-दूसरे की याद बहुत सताती है- 

बारिशें जब भी हुई हैं धूप के संग-संग यहाँ
तब तुम्हारी याद के परदे अचानक हिल गए।
                                  नित्यानंद तुषार

और यादों के साये में पत्रों के माध्यम से ही नायक-नायिका एक-दूसरे को अपने मन की बात बता सकते हैं. इसी का एक सुन्दर उदाहरण हमें प्रस्तुत शेअर में देखने को मिलता है-
सुर्ख होठों से लगाकर सिर्फ जिनको तुम पढ़ो
खत बहुत ऐसे तुम्हारी याद लिखवाने लगी।
                               नित्यानंद तुषार

विरह के क्षणों में अश्क भी शहद की बूँदों की तरह मधुर ही लगते हैं-

तेरी यादों में सुलगता रहा दिल चंदन सा
जब पिये अश्क लगा शहद की बूँदें पी हैं।
                             डॉ0 कुँअर बेचैन

विरह में नायक की जड़वत दशा को अभिव्यक्त करता हुआ प्रस्तुत शेअर-

गम के पत्थर में किसी बुत-सा छिपा बैठा हूँ मैं
अब तेरी मुस्कान की छैनी ही बाहर लायेगी।
                             डॉ0 कुँअर बेचैन

इस प्रकार गजल का एक-एक शेअर ही श्रृंगार रस की अनुभूति कराने में सक्षम है. 

2. हास्य रस-

हिन्दी गजल में शुद्ध हास्य रस की अभिव्यक्ति बहुत ही कम देखने को मिलती है जहाँ कहीं हास्य रस दिखाई देता है उसमें व्यंग्य का पुट अवश्य मिला होता है शायर ने उचित ही कहा है-
लीडरी अब बन गई है जोकरी हम क्या करें
अब सुनाकर हास्य रस की पोइट्री हम क्या करें।
                                     काका हाथरसी

समाज में फैली आर्थिक विसंगति की अभिव्यक्ति प्रस्तुत शेअर में शायर ने हास्य में व्यंग्य का पुट मिलाकर की है-

इनको न मिल सके हैं भरपेट गुड़-चने भी
उनको सता रही है बादाम की समस्या।
                                   हरिओम बेचैन

प्रस्तुत शेअर में शायर ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से समाज में फैली दहेज-प्रथा की कुरीति पर करारा प्रहार किया है-

मौत दुल्हन की बुलाए से न आई होती
क्यों न ससुराल गई साथ में पीहर लेकर।
                                                  डॉ0 सारस्वत मोहन मनीषी
3.करूण रस-

गजल विधा में करूण रस की अभिव्यक्ति बहुत ही कम हूई है, हिन्दी गजलों में 
भी करूण रस की अभिव्यक्ति बहुत ही कम हुई है किन्तु जहाँ कहीं करूण रस की
अभिव्यक्ति हिन्दी गजल में दिखाई देती है वो बहुत ही भावप्रद है जैसा कि प्रस्तुत शेअर में-
हम द्वार पर खड़े थे पत्रों की प्रतीक्षा में
पर तार हाथ आया प्रिय प्रीति के निधन का।
                                डॉ0 कुँअर बेचैन

कहाँ तो प्रेमी प्रिय के पत्रों की प्रतीक्षा कर रहा हो, कहाँ इसी समय उसे प्रीति के निधन का समाचार मिले. इससे अधिक सघन दुःख और क्या होगा, ऐसा करूण रस काव्य में और कहाँ मिलेगा.

4. रौद्र रस-
रौद्र रस की अभिव्यक्ति गजल विधा की प्रकृति के अनुकूल नहीं है किन्तु हिन्दी गजलों मं अक्सर गजलकारों ने अपने आक्रोश को अभिव्यक्त किया है.
उदाहरण-
आज के माहौल का खूख्वार चेहरा देखकर
गठरियाँ खुलने लगीं खुद ही ठगों के बीच में।
                                  डॉ0 कुँअर बेचैन
रौद्र रस का पुट लिये एक और शेअर-
जुल्म अत्याचार शोषण हो न पाए अब कहीं
हो अगर ऐसा कहीं उससे सदा टकराइए।
                                नित्यानंद तुषार 

5. वीर रस-
हिन्दी गजलों में वीर रस से ओत-प्रोत गजलें भी देखने को मिलती हैं जो कि शान्त मन में भी ओज को उत्पन्न करने में सहायक हैं जैसा कि प्रस्तुत शेअर को पढ़कर अनुभव होता है-
शान्त मत बैठो कि हल्ला बोलने की है घड़ी
शब्द को इस वक्त शंख-ध्वनि बनाओ दोस्तों।
                                     शिव ओम अम्बर
वीर-रस में रची एक और हिन्दी गजल-
रख न अभी हथियार लड़ाई लम्बी है
रह चौकस, हुशियार लड़ाई लम्बी है।
निर्णय होना शेष, स्पष्ट हो न सकी
अभी जीत या हार लड़ाई लम्बी है।
अभी कवच मत खोल अभी ही दुश्मन का
हो सकता है वार लड़ाई लम्बी है।
अभी समर है शेष, न हो संघर्ष विरत
रख खुद को तैयार लड़ाई लम्बी है।
वृत्ति जुझारू बनी रहे इस कारण तू
युद्ध-युद्ध उच्चार लड़ाई लम्बी है।
अभी कहाँ विश्राम की उठ निज शस्त्रों की
और तेज कर धार लड़ाई लम्बी हैः
लड़ता है हौसला सिपाही का केवल
शस्त्र नहीं आधार लड़ाई लम्बी है।
योद्धा का संकल्प, शौर्य, उत्सर्ग, अभय
जीता है हर बार लड़ाई लम्बी है।
                         चन्द्रसेन विराट

6. भयानक रस-
गजल विधा सरस भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है इसमें भयानक रस की अभिव्यक्ति को कोई स्थान नहीं होता, किन्तु हिन्दी गजल में कुछ शेअर ऐसे अवश्य लिखे गये हैं जिन्हें पढ़कर भय उत्पन्न होता है. जैसे-

चक्रव्यूहों में फँसी है साँस ये
मौत कितनी क्रूर होती जा रही।
ये निराशायें मनीषी वज्र सी
आस चकनाचूर होती जा रही।
                                  डॉ0 सारस्वत मोहन मनीषी

7. वीभत्स रस-
भयानक रस की भाँति ही वीभत्स रस की अभिव्यक्ति गजल विधा के प्रतिकूल है, फिर भी हिन्दी गजल में वीभत्स रस की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है. हिन्दी भाषी गजलकारों ने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो वीभत्स रस उत्पन्न करने में सहायक हैं. जैसे-
                                           वक्त करता रहा खून की उल्टियाँ
हम उठाते रहे मुल्क में हाशिया।
                   डॉ0 महेन्द्र कुमार अग्रवाल

जिनकी आँखों में घिनौनी भावना का चित्र था
हम प्रसूनों की तरह उस भीड़ में धँसते गये।
                                 डॉ0 अजय प्रसून

उपर्युक्त शेअरों में रेखांकित शब्द वीभत्स रस की व्युत्पत्ति में सहायक हैं.

8. शान्त रस-
गजल विधा में शान्त रस की अभिव्यक्ति गजल के प्रारम्भिक समय से होती आ रही है. प्राचीन समय में गजल के दो प्रमुख विषय थे इश्क मजाजी और इश्क हकीकी. इश्क हकीकी में कही गयी गजलें शान्त रस की ही अभिव्यक्ति करती हैं. हिन्दी गजलों में भी शान्त रस की अभिव्यक्ति की गयी है. जैसे-

याद जब उसकी मेरी आँखों में जल भर लायेगी
तब ही मेरी प्यास खुद मुझको मेरे घर लायेगी.
                                    डॉ0 कुँअर बेचैन

उपर्युक्त शेअर में शायर ने आत्मा और परमात्मा के मिलन के भाव को शान्त रस के माध्यम से अभिव्यक्त किया है. ऐसे ही शान्त रस के माध्यम से शायर ने जिन्दगी के अन्तिम क्षणों की अभिव्यक्ति की है-
  
राह में थककर जहाँ बैठी अगर यह जिन्दगी
मौत आई, बाँह थामी और उठाकर ले गयी.
                                    डॉ0 कुँअर बेचैन
9. अद्भुत रस-                                                 
हिन्दी गजलों में कहीं-कहीं गूढ़ भावाभिव्यक्ति के साथ-साथ अद्भुत रस की अनुभूति भी होती है. जैसे-
आँधियाँ आईं तो डाली से बिछुड़ जाना पड़ा
फूल था लेकिन मुझे पंछी-सा उड़ जाना पड़ा।
                                    डॉ0 कुँअर बेचैन

आँधियाँ आने पर तो डाली से टूटकर फूल धूल में गिर जाना चाहिये, लेकिन आश्चर्य है कि फूल गिरा नहीं वरन् पंछी की तरह आकाश में उड़ गया. उपर्युक्त शेअर में जहाँ अद्भुत रस की अनुभूति होती है वहीं शायर का गूढ़ भाव भी अभिव्यक्त हो रहा है कि मौत रूपी आँधी आने पर डाली रूपी परिवार से बिछुड़ कर इंसान को आकाशलोक में जाना ही पड़ता है.

नव रस के साथ-साथ वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति भी हिन्दी गजलों में देखने को मिलती है. जैसै-
जन्म से बोझ पा गए बच्चे
पालने में बुढ़ा गए बच्चे।
डस्टबिन से उठा चले रोटी
लोरियों को गिरा गए बच्चे।
                     शिवओम अम्बर 

वात्सल्य रस की अनुभूति कराता हुआ एक और शेअर-

नन्हें बच्चों से कुँअर छीन के भोला बचपन
उनको हुशियार बनाने पे तुली है दुनिया।
                                    डॉ0 कुँअर बेचैन



















No comments:

Post a Comment