Wednesday, July 31, 2024


कुकुरमुत्ता नहीं! मशरूम हूँ मैं।

स्वयं नहीं! उगाया जाता हूँ मैं।

फँगस नहीं! शाही सब्जी हूँ मैं।

अमीरों की खास पसंद हूँ मैं।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, July 30, 2024

 

        

          

चाहतों के मेलों ने

उपवन सजा दिये।।

फूलों को नये रंग, गंध दे दिये।

पक्षियों को नव राग दे दिये।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, July 29, 2024


अम्बर से बातें करेंगे,

धरा पे गीत लिखेंगे।

हो फुरसत तुम्हें देखने से,

जग से भी दो बातें करेंगे।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, July 28, 2024


छुअन है, सुगंध है, प्यार है।

सादा कागज भी खास है।

क्योंकि आपने हमें दिया है।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, July 27, 2024


 

भाव लहरी

ह्रदय में उमड़ी

शब्दों में बही।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, July 26, 2024


ओस-बूँद कहती है; लिख दूँ

नव-गुलाब पर मन की बात।

कवि कहता है: मैं भी लिख दूँ

प्रिय शब्दों में मन की बात।

ओस-बूँद लिख सकी नहीं कुछ

नव-गुलाब हो गया मलीन।

पर कवि ने लिख दिया ओस से

नव-गुलाब पर काव्य नवीन।

                     केदारनाथ अग्रवाल 

Thursday, July 25, 2024


अभिवादन बादल-बादल

खबर लिये वन-उपवन की

कितने आर्शीवाद लिये

पहली बरखा सावन की।

                                        यश मालवीय 

Wednesday, July 24, 2024


                                    पावस ऋतु वर्णन-

राजै रसमै री तैसी बरखा समै री चढ़ी,

चंचला नचै री चकचौंध कौंध वारै री।

व्रती व्रत हारै हिए परत फुहारैं,

कछु छीरैं कछु धारैं जलधार जलधारैं री।

भनत कविंद कुंजभौन पौन सौरभ सों.

काके न कँपाय प्रान परहथ पारै री ?

काम कंदुका से फूल डोलि डोलि डारै, मन

और किए डारै ये कदंबन की डारै री।

                              कवींद्र 

Tuesday, July 23, 2024

 

सुबह-सबेरे आशा की किरण है कहती

बरसेंगे आज उम्मीदों के बादल।

दिन सारा तेज धूप में है निकल जाता

शाम ढ़ले फिर छा जाते उदासी के बादल।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, July 22, 2024


एक बार आ जाओ कान्हा!

मैं राधा नहीं, ना ही कोई गोपी।

फिर भी अपनी चरण-रज बना लो कान्हा!

भूल से चंदन समझ, मस्तक पे लगा लो कान्हा!


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 21, 2024


यादों के समन्दर में, यादों की नावें,

यादों की नावों में, यादें सवार,

दूर क्षितिज तक, नजरें पहुँचें जहाँ तक,

दिखती हैं यादें ही यादें हर तरफ।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, July 20, 2024


डूबे रहते हैं तेरी यादों में तो,

दिन सुकून से गुजर जाता है।

मुश्किल है, बहुत मुश्किल

तेरी यादों के बिना जीना।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, July 19, 2024


आँखें कहें, अपलक देखता रहूँ

कान कहें, मौन हो सुनता रहूँ।

तुम्हीं कहो! प्रिय रागिनी! कैसे?

तुमसे अपने मन की बात कहूँ।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, July 18, 2024


बैर करो तो रावण सा राम से,

मरोगे तो भी तर जाओगे।

प्यार करो तो मीरा सा कृष्ण से,

बिष भी पिओगे तो जी जाओगे।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, July 17, 2024


अँधेरे कब रूके हैं उजालों के आगे।

निराशायें कब रूकी हैं आशाओं के आगे।

आकाश कब दूर है उड़ानों के आगे।

मंजिल कब दूर है चाहतों के आगे।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, July 16, 2024


मुद्दत बाद तस्वीर जो देखी अपनी

अपनी ही सूरत बेगानी नजर आयी।

खिले गुलाबों की जगह सलवटें और

घनघोर घटा से केश रजत-सम दिखे।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, July 15, 2024


पृथ्वी घूमती सूरज के चारों ओर

चाँद घूमता पृथ्वी के चारों ओर।

होते इसी से दिन-रात जग में

अँधेरी-उजाली रातें होती जग में।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, July 14, 2024


मोम से पिघले, फिर मोम बन गये।

जिंदगी तुझे जीने को मजबूर हो गये।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, July 13, 2024


        टूटे नीड़

        भीगे पंख

        गुमसुम पक्षी

        कैसी बारिश!

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, July 12, 2024


मन के पाँवों में बँधे हैं, उनकी यादों के घुँघरू।

सँभाल के पाँव रखे चाहे जितना, झनकते ही हैं ये घुँघरू।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, July 11, 2024


उठती-गिरती लहरें कहतीं कथा प्यार की

सागर की बाहों में, चाँदनी सिमट आई है।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, July 10, 2024


पर हैं पर उड़ने की अभिलाषा मन में

पिंजरे से तकते हैं परिंदे आकाश को।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, July 9, 2024


मत छेड़िये, दुखती रगों को।

बरसाती बादल हैं, न जाने कब बरस जायें।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, July 8, 2024


साँझ का मन उदास है प्रिये!

कोई गीत गुनगनाओ।

चाँद आता ही होगा गगन में

जड़ रहा होगा सितारे चुनरी में।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, July 7, 2024


जल भरे झूमैं मानौ भूमै परसत आय,

दसहु दिसान घूमै दामिनि लए लए।

धूरिदार धूसरे से, धूम से धुंआरे कारे,

धुरवान धारे धावैं छवि सों छए छए।

                                श्रीपति 


खुद को बनाने से पहले

खुद को मिटाना जरूर था।

अपने आप अपनी तकदीर

बनाना आसान न था।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, July 6, 2024


बरसते मेघ-दल से कहिये,

पिघलते हिम-खंड से कहिये।

कहनी है बात दूर तलक तो,

बहती हुई पवन से कहिये।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, July 5, 2024


नजर में सज के नगीना बन गये।

गिर गये तो कहलायेंगे पत्थर।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, July 4, 2024

देखते ही देखते घटा घनघोर हो गयी।

अभी सुबह थी, लगा रात हो गयी।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, July 3, 2024


आँधियों में दीपक की लौ को देखो।

बारिशों में नदी के वेग को देखो।।

उछाल के देखो गमों की सौगातें।

व्यक्तित्व में निखार फिर और देखो।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, July 2, 2024


 सीमित दायरों में, बढ़ रहे हैं वट-वृक्ष।

विकास-पथ पर, ये नया कदम है।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, July 1, 2024


जरा तो मुस्कुरा के चल,

कि चाँदनी बिखरा के चल।

बहुत अँधेरा है दिल में,

जरा उजाला कर के चल।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग