Tuesday, August 20, 2024

 

 क्योंकि मैं बीज हूँ

क्योंकि मैं बीज हूँ

शिखर पर रहकर भी

कठोर आवरण में रहता हूँ.

समय आने पर, कहीं दूर

भूमि में बो दिया जाऊँगा

अंकुरित होने के लिये.

पुरातनता के संस्कार लिये

नयी हवा, पानी, मिट्टी में पनपने के लिये.

उजाला मुझे तब भी नहीं मिलेगा

जो मुझसे उष्मा पाकर

आयेंगे बाहर, वो अंकुर होंगे.

पल्लव होंगे, तने होंगे, फूल होंगे

और होंगे फल, लेकिन जब मेरा प्रतिरुप

बीज आयेगा; तो फिर वही कठोर आवरण में------------

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

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