Sunday, August 4, 2024

 

जब क्रौंच-वध से वाल्मीकि जी के ह्रदय में गहन दुःख की अनुभूति हुई थी जिसके परिणाम स्वरूप साहित्य का प्रथम छंद* सहसा ही वाल्मीकि जी के मुख से निकला था उसी का वर्णन कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में किया है-

वस्तुतः छन्द यह आदि छन्द

लौकिक छन्दों में प्रथम श्लोक।

अब तक न हुई रचना ऐसी

परिचित इससे क्या नहीं लोक।

 

वैदिक छन्दों में ही अब तक

अभिव्यक्त भावना होती थी

उन चिर-परिचित नीड़ों में ही

कल्पना थकी-सी सोती थी।

          द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

 

*मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शाश्वती समा।

यत्क्रौंच मिथुनादेकम् अवधी काममोहितम्।।


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