प्यार की छुअन जब-जब मिली,
डॉ. मंजूश्री गर्ग
स्नेहिल स्पर्श पा श्री राम का,
जड़ अहिल्या बनी फिर नारी।
अधरों की छुअन पा श्री कृष्ण की,
जड़ बाँसुरी बजी सप्तम स्वर में।
नाच उठा मन-मयूर वन में।
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