मैं चाँद नहीं हूँ पूनम का
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
अभिलाषा थी मन में मेरे
अर्ध्य चढ़ाये फिर कोई देवी
पूजा था कल जिसने मुझको
पर नहीं कोई अब आयेगा.
मैं चाँद नहीं हूँ पूनम का
मैं चाँद कहलाता पड़वा का.
रोशनी है, पर
दीपित कर दूँ किसी के मन को
ये अब मेरे बस की बात नहीं.
नहीं हेरता कोई मुझको
किसी इच्छा से
मैं चाँद नहीं हूँ पूनम का
मैं चाँद कहलाता पड़वा का.
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