गजल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी जी रहा है हर कोई।
दम घोंटू हवा में सांस ले रहा है हर कोई।।
टूटते खिलौनों सा बचपन रूठता है हर कहीं।
अभावों से दबी जवानी जी रहा है हर कोई।।
फूलों से लदी डाली खुशबू को तरसती है।
पीत वर्ण पात सा झर रहा है हर कोई।।
टुकड़ा-टुकड़ा आँसू गिर रहे कपोलों पर
अधरों को सीकर मुस्का रहा है हर कोई।।
खुशियाँ बिखर रहीं घर-आँगन फिर भी
अरमानों की चिता जला रहा है हर कोई।।
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