चुप-चुप बहे आँसू,
महफिल में सजा लाये हैं.
बिखर ना जायें यूँ ही,
शब्द माला में पिरो लाये हैं.
हँस लेने दो उनको भी,
जो कहते आये हैं पागल.
प्रेम-कहानियाँ वे,
यूँ ही सुनते आये हैं.
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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