Friday, May 5, 2017


फिर मनायी छोटी दीवाली

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

हम लड़कियाँ भी कितनी बेबफा होती हैं
शादी होते ही भूल जाती हैं वो आँगन वो घर
जहाँ खेले अनेकों बसन्त, मनायी दिवालियाँ.
पिता से ज्यादा ससुर जी का ख्याल
माँ से ज्यादा सासु जी की आज्ञा का पालन
भाई से ज्यादा देवर और बहन से ज्यादा ननद.
पति के दोस्तों की पत्नियाँ ही बन जाती हैं सखियाँ

बरसों बाद भाभियाँ दिलाती हैं याद कि
दीदी हमारे यहाँ छोटी दिवाली को भी हठरी पूजन होता है.
तब याद आती है छोटी दिवाली की शाम.
शाम से ही घर में उत्सव का माहौल
दिवाली के दिन जैसी ही सज-धज.
खील-बताशे, मिठाईयाँ, पूरी पकवान
फुलझड़ी-पटाखे की रौनक.
बरसों बाद मायके में भाभी के साथ
फिर मनायी छोटी दिवाली.


 



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