गजल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
कितनी ही मीठी धारायें मिलें, प्यासा सागर कहलाया.
कितना ही सावन सूखा बीते, सावन-सावन कहलाया.
सब नगरों के गंदे नाले, आकर उसके गले मिले,
वो गंगा थी या जमुना, जल पावन कहलाया.
बीते युग की बात, मन भुला ना पाया अब तक,
प्यार पावन था, पर अपावन कहलाया.
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