कचनार
डॉ. मंजूश्री गर्ग
कचनार का वृक्ष
सड़क किनारे या उपवनों में अधिकांशतः पाया जाता है। नवंबर से मार्च तक के महीनों
में अपने गुलाबी व जामुनी रंगों के फूलों से लदा ये वृक्ष अपनी सुंदरता से सहज ही
सबका मन मोह लेता है।
सन् 1880 ई.
में हांगकांग के ब्रिटिश गवर्नर सर् हेनरी ब्लेक(वनस्पतिशास्त्री) ने अपने घर के
पास समुद्र किनारे कचनार का वृक्ष पाया था। उन्हीं के सुझाये हुये नाम पर कचनार का
वानस्पतिक नाम बहुनिया ब्लैकियाना पड़ गया। कचनार हांगकांग का राष्ट्रीय फूल है और
इसे आर्किड ट्री के नाम से भी जाना जाता है। भारत में मुख्यतः कचनार के नाम से ही
जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कन्दला या कश्चनार कहते हैं। भारत में यह उत्तर से
दक्षिण तक सभी जगह पाया जाता है।
कचनार के पेड़
की लंबाई 20 फीट से 40 फीट तक होती है। कचनार अपनी पत्तियों के आकार के कारण सहज
ही पहचान में आ जाता है। पत्तियाँ गोलाकार होती हैं और अग्रभाग से दो भागों में
बँटी होती हैं। मध्य रेखा से आपस में जुड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की तुलना ऊँट
के खुर से भी की जाती है। कचनार के गुलाबी रंग के फूल के पेड़ों में जब फूल आने
शुरू होते हैं तो अधिकांशतः पत्तियाँ झड़ जाती हैं। जामुनी रंग के कचनार के पेड़ों
में प्रायः फूलों के साथ पत्तियाँ भी रहती हैं। कचनार के फूलों में पाँच पँखुरियां
होती हैं और फूलों से भीनी सुगंध आती है।
कचनार के पेड़
भूस्खलन को भी रोकते हैं। कचनार के फूल की कली देखने में भी सुंदर होती है और खाने
में स्वादिष्ट भी। कचनार के वृक्ष अनेक औषधि के काम आते हैं व इससे गोंद भी निकलता
है। कचनार की पत्तियाँ दुधारू पशुओं के लिये अच्छा आहार होती हैं।
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