अर्जुन वृक्ष भारत में पाये
जाने वाला औषधीय वृक्ष है। औषधि के रूप में अर्जुन वृक्ष का प्रयोग होता है, जिसका
रस ह्रदय रोग में बहुत ही लाभकारी है। आयुर्वेद ही नहीं होम्योपैथी में भी इसकी
महत्ता स्वीकार की गयी है और आधुनिक विद्वान भी वर्षों से अर्जुन की छाल पर शोधकार्य
कर रहे हैं और धीरे-धीरे इसकी महत्ता स्वीकार कर रहे हैं।
अर्जुन के वृक्ष को धवल,
ककुभ तथा नदीसर्ज(नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं। यह 60 फीट से 80
फीट ऊँचा सदाबहार पेड़ है जो हिमालय की तराई के इलाकों में, शुष्क पहाड़ी
क्षेत्रों में नाले के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में बहुतायत से पाये
जाते हैं। यह एक सदाबहार पेड़ है। अर्जुन वृक्ष की छाल का ही प्रयोग किया जाता है
लेकिन अर्जुन के पेड़ की कम से कम पन्द्रह प्रजाति पाई जाती हैं। इसलिये यह जानना
अति आवश्यक है कि किस पेड़ की छाल का दवाई के रूप में प्रयोग करना चाहिये। सही
अर्जुन की छाल अन्य पेड़ों की तुलना में कहीं अधिक मोटी व नरम होती है। शाखा रहित
यह छाल अंदर से रक्त-सा रंग लिये होती हैं। पेड़ पर से छाल चिकनी चादर के रूप में
उतर आती है। वर्ष में लगभग तीन बार पेड़ स्वतः छाल गिरा देता है।
अर्जुन का वृक्ष लगभग दो
वर्षा ऋतुओं में विकास कर लेता है। इसके पत्ते 7 से.मी. से 20 से. मी. आयताकार
होते हैं। कहीं-कहीं नुकीले होते हैं। बसंत के मौसम में नये पत्ते आते हैं और
छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते हैं। पत्तों का ऊपरी भाग चिकना व निचला भाग रूखा व
शिरायुक्त होता है। अर्जुन वृक्ष पर बसंत के मौसम में सफेद या पीले रंग की
मंजरियाँ आती हैं, इन्हीं पर कमरक के आकार के लेकिन थोड़े छोटे फल लगते
हैं। 2 से.मी. से 5 से. मी. लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर
भूरे लाल रंग के हो जाते हैं। फलों की गंध अरूचिकर व स्वाद कसैला होता है। फल से
इस वृक्ष की पहचान आसानी से हो जाती है। अर्जुन के वृक्ष का गोंद स्वच्छ, सुनहरा व
पारदर्शी होता है।
अर्जुन की छाल में पाये
जाने वाले मुख्य घटक हैं- बीटा साइटोस्टेराल, अर्जुनिक अम्ल तथा फ्रीडेलीन।
विभिन्न प्रयोगों द्वारा पाया गया है कि अर्जुन से ह्रदय की माँसपेशियों को बल
मिलता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा उसकी प्रति मिनट गति भी कम हो जाती है।
ह्रदय की रक्तवाही(कोरोनरी) धमनियों में रक्त का थक्का नहीं बनने देता।
अर्जुन की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाकर किसी सूखे व शीतल स्थान पर रखना चाहिये। अर्जुन की छाल का प्रयोग कब, कितना, कैसे करना है ये किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श कर के ही करना चाहिये।
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