धूप, दीप, चंदन,
अक्षत रखे हैं थाल में।
अर्ध्य देने को आतुर
हैं नयन हमारे।
प्रिय! बीत गया विरह का मौसम
बासंती मौसम आ गया।
बासंती गंध से महक रहे
राजपथ के गलियारे।
दिल के गलियारे महकें
तेरी ही गंध से।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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