Tuesday, February 12, 2019




छा गई फिर बसन्त की हलचल
आओ खुशियों से हम भरें आँचल।
वे जो आकाश को छिपाये थे
हट गये आज साँवले बादल।
धूप छिपकर कहीं जो बैठी थी
उसकी फिर से छनक उठी पायल।
                    बंद कलियों का गंधमय यौवन
खुलने-खिलने को हो रहा चंचल।

                              -पुष्पा राही


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