छा गई फिर बसन्त की हलचल
आओ खुशियों से हम भरें आँचल।
वे जो आकाश को छिपाये थे
हट गये आज साँवले बादल।
धूप छिपकर कहीं जो बैठी थी
उसकी फिर से छनक उठी पायल।
बंद कलियों का गंधमय यौवन
खुलने-खिलने को हो रहा चंचल।
-पुष्पा
राही
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