कवि विद्यापति गंगा मैय्या
के बहुत बड़े भक्त थे. अन्त समय स्वयं गंगा मैय्या दस कोस चलकर कवि के पास तक आयीं
थीं उस समय जो कवि ने रचना की प्रस्तुत है-
बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे।
छोड़इत निकट नयन बह नीरे।।
करनोरि बिलमओ विमल तरंगे।
पुनि दरसन होए पुनमति गंगे।।
एक अपराध होए छमब मोर जानी।
परमल माए पाए तुम पानी।।
कि करब जप-तप जोग-धेआने।
जनम कुतारथ एकहिं सनाने।।
भनई विद्यापति समदजों तोही।
अन्तकाल जनु बिसरह मोही।।
विद्यापति
No comments:
Post a Comment