Saturday, February 9, 2019


हिन्दी भाषा का मानक रूप-   पुस्तक का अंश(डॉ. मंजूश्री गर्ग)

पद परिचय
शब्द अपने आप में एक छोटा पद है, जो वाक्य में प्रयुक्त होता है. इसके अतिरिक्त जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने के योग्य हो जाता है तो पद कहलाता है. जो वाक्य में संज्ञा, कर्म, क्रिया के कार्य करने के साथ-साथ लिंग और वचन का भी बोध कराता है. जैसे-
बच्चा खेल रहा है” वाक्य में बच्चा पदबंध वाक्य में कर्त्ता का बोध करा रहा है साथ ही एक वचन पुर्ल्लिंग का भी बोध करा रहा है. ऐसे ही खेल रहा है पदबंध वाक्य में खेलने की क्रिया का बोध करा रहा है साथ ही एक वचन पुर्ल्लिंग का बोध भी करा रहा है. ऐसे ही-
“बच्चे खेल रहे हैं”. वाक्य में बच्चे पदबंध वाक्य में कर्त्ता का बोध करा रहा है. साथ ही बहुवचन पुर्ल्लिंग का बोध भी करा रहा है. ऐसे ही खेल रहे हैं पदबंध वाक्य में क्रिया का बोध करा रहे हैं साथ ही बहुवचन पुर्ल्लिंग बोध भी करा रहे हैं. ऐसे ही-
“बच्ची खेल रही है”. वाक्य में बच्ची पदबंध कर्त्ता के साथ-साथ एक वचन स्त्रीलिंग का बोध भी करा है और खेल रही है पदबंध क्रिया के साथ-साथ एक वचन स्त्रीलिंग का बोध भी करा रही हैं. ऐसे ही-
बच्चियाँ खेल रही हैं” वाक्य में बच्चियाँ पद कर्त्ता और खेल रही हैं पदबंध क्रिया के साथ-साथ बहुवचन और स्त्रीलिंग का बोध भी करा रहे हैं.
पदबंध-
“पद या पद के साथ अन्य शब्दों से बना वह शब्द-समूह जो वाक्य की रचना करता है पदबंध कहलाता है.” पदबंध एक शब्द का भी हो सकता है और एक से अधिक शब्दों का भी. हर पदबंध का एक मुख्य शब्द होता है जिसे शीर्ष कहते हैं अन्य शब्द उस शीर्ष का विस्तार होते हैं. जैसे-
“कक्षा के छात्रों ने मोहन को अपना मॉनीटर चुना.”  वाक्य में कक्षा के छात्रों ने पदबंध में छात्र वाक्य में कर्त्ता का कार्य कर रहे हैं शेष उसका विस्तार कर रहे हैं.
पदबंध से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य-
1.   पदबंध एक शब्द का भी हो सकता है और एक से अधिक शब्दों का भी.
71.
2.   पदबंध वाक्य में एक निश्चित व्याकरणिक कार्य करते हैं. जैसे- कर्त्ता, कर्म, पूरक, क्रिया-विशेषण, या क्रिया के स्थान पर इनका प्रयोग होता है.
3.   पदबंध के अपने घटक परस्पर अर्थ की दृष्टि से जुड़े रहते हैं. इसे निकटतम घटक का सम्बंध कहते है.
पदबंध के प्रकार-
पदबंध वाक्य में कर्त्ता, कर्म, क्रिया सम्बंधी कोई ना कोई कार्य करते हैं, उसी कर्म के आधार पर पदबंध के पाँच भेद किये गये हैं-
1.   संज्ञा पदबंध
2.   सर्वनाम पदबंध
3.   विशेषण पदबंध
4.   क्रिया विशेषण पदबंध
5.   क्रिया पदबंध
   1.संज्ञा पदबंध-
जो पदबंध वाक्य में संज्ञा का कार्य करते हैं वे संज्ञा पदबंध कहलाते हैं. संज्ञा पदबंध में कम से कम एक शब्द संज्ञा होती है शेष अंश उसका विस्तार करते हैं. संज्ञा वे शब्द होते हैं जो किसी प्राणी, व्यक्ति, स्थान अथवा भाव के रुप में प्रयुक्त होते हैं. इसके पाँच भेद हैं-
क.    व्यक्ति वाचक संज्ञा- सुभाष, हिमालय, इलाहाबाद, गंगा, आदि.
ख.    जाति वाचक संज्ञा- लड़का, पहाड‌, नदी, नगर, आदि.
ग.     भाववाचक संज्ञा- बचपन, सुंदरता, प्रेम, योग्यता, आदि.
घ.     द्रव्य वाचक संज्ञा- सोना, चाँदी, लकड़ी, अन्न, आदि.
ङ.      समूह वाचक संज्ञा- सेना, पुलिस, सभा, मंत्रिमंडल, आदि.
वाक्य की आवश्यकतानुसार संज्ञा शब्दों का लिंग, वचन और कारक के आधार पर रुपांतरण होता है. निश्चित नियम के आधार पर संज्ञा शब्द संज्ञा पदबंध का रुप धारण करते हैं.
वचन के आधार पर संज्ञा पदबंध का रुप परिवर्तन-
हिंदी भाषा में दो वचन होते हैं- एक वचन और बहुवचन. जैसे-लड़काशब्द एक वचन है और लड़के
72.
शब्द बहुवचन, साथ ही दो लड़के पदबंध भी बहुवचन का ही बोध करायेंगे. वचन के साथ गणनीय-अगणनीय का भेद भी जुड़ा रहता है. लड़का, मेज, किताब गणनीय हैं अर्थात इन्हें गिना जा सकता है.जैसे- चार लड़के, दो मेज, दस किताबें. आटा, दूध, पानी, आदि अगणनीय हैं अर्थात इन्हें गिना नहीं जा सकता केवल मापा, तौला या नापा जा सकता है.
संज्ञा पदबंधों में वचन विभक्ति प्रत्यय सम्बंधी नियम-
अ.    ईकारांत/ऊकारांत शब्दों में वचन विभक्ति प्रत्यय लगने से पूर्व उनका स्वरुप इ/उ होता है. जैसे-बाबू का बाबुओं.
आ.  ईकारांत/इकारांत शब्दों में वचन विभक्ति प्रत्यय लगने से पहले आ जाता है. जैसे- लड़कीका लड़कियाँ’, ‘कविका कवियों’ .
इ.      पुर्ल्लिंग आकारांत शब्द का बहुवचन बनाते समय की जगह ऐ की मात्रा लगती है. जैसे- तालाका ताले’.
ई.      स्त्रीलिंग आकारांत शब्द का बहुवचन बनाते समय के साथ विभक्ति प्रत्यय जुड़ जाता है. जैसे- मालाका मालायें’.
वचन सम्बंधी कुछ विशेष नियम-
1.बहुवचन रुपों का प्रयोग आदर दिखाने के लिये भी होता है. जैसे-
गुरुजी आ रहे हैं(यद्यपि केवल एक गुरु आ रहे हैं).
युधिष्ठर सत्यवादी थे.
व्यक्ति नाम के आगे जी’, ‘साहब’, या नाम से पहले श्रीलगाने से भी आदर का भाव सूचित होता है. ऐसे वाक्यों में बहुवचन का प्रयोग होता है.
2. हिंदी भाषा में कुछ शब्द हमेशा बहुवचन के रुप में प्रयुक्त होते हैं. जैसे- दर्शन, हस्ताक्षर, आदि.
उदाहरण-
मैं आपके दर्शन  के लिये आया हूँ.
कृप्या अपने हस्ताक्षर कर दीजिये.
73.
3.कुछ शब्द सदैव एक वचन के रुप में प्रयुक्त होते हैं. जैसे- जनता, वर्षा, हवा, आग, आदि.
उदाहारण-
देश की जनता महँगाई से व्याकुल है.
सावन के महीने में वर्षा होती है.
लिंग
हिंदी भाषा में दो लिंग हैं- पुर्ल्लिंग और स्त्रीलिंग. लिंग हिंदी भाषा में एक व्याकरणिक पहचान है. प्रत्येक संज्ञा शब्द को दोनों में से किसी एक लिंग का होना अनिवार्य है क्योंकि संज्ञा के लिंग के अनुसार ही विशेषण और क्रिया के रुप चलते हैं. जैसे- लड़का पढ़ता है, लड़की पढ़ती है. अच्छा लड़का, अच्छी लड़की. मेज, कुर्सी स्त्रीलिंग में आते हैं इसी के अनुसार वाक्य रचना होती है.
उदाहरण-
कमरे में मेज रखी है.
मेज के पास दो कुर्सी रखी हैं.
विशेष-
1.आधुनिक समाज में कुछ पदवाची शब्द ऐसे हैं जिनमें लिंग परिवर्तन नहीं होता है, चाहे पद पर स्थित व्यक्ति पुरुष हो या स्त्री. जैसे- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, डॉक्टर, प्रिंसिपल, मैनेजर, आदि.
2.कुछ तत्सम शब्दों में हिंदी भाषा में वह लिंग प्रयुक्त नहीं होता, जो संस्कृत भाषा में है. जैसे- संस्कृत भाषा में आत्मा’, महिमा, आदि शब्द पुर्ल्लिंग हैं, जबकि हिंदी में स्त्रीलिंग. ऐसे ही संस्कृत में व्यक्ति शब्द स्त्रीलिंग है किंतु हिंदी में पुर्ल्लिंग.




74.
कारक
कारकका शाब्दिक अर्थ क्रिया को करने वाले से है. संज्ञाशब्द कारक के साथ संबद्ध होकर क्रिया को पूरा करने में समर्थ होते हैं.
कारक के मुख्य भेद हैं-
क.    कर्त्ता         क्रिया को करने वाला        0(शुन्य),ने (कारक चिह्न/परसर्ग)
ख.    कर्म         जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े 0(शून्य), को ---------------
ग.     करण        जिस साधन से क्रिया हो           से, के द्वारा
घ.     संप्रदान       जिसका हित क्रिया करे      के लिये
ङ.      अपादान            जिससे अलगाव हो रहा हो    से
च.     अधिकरण     जहाँ और जब क्रिया हो रही हो      में, पर
छ.    सम्बंध       संज्ञा से संज्ञा का सम्बंध           का, के, की
(क्रिया से भिन्न)
ज.    सम्बोधन     जिस संज्ञा को पुकारा जाये         हे!, अरे!
विशेष- 0(शून्य) का अर्थ है कि कोई परसर्ग दिखाई नहीं देता.
उदाहरण-
1.मोहन बल्ले से गेंद खेलता है.
मोहन कर्त्ता है और खेलने की क्रिया करने वाला है. गेंद खेल रहा है अर्थात गेंद कर्म है और खेलने की
क्रिया का साधन बल्ला है, अतः बल्ला करण है. यहाँ कर्त्ता और कर्म के कारक चिह्न दिखाई नहीं दे रहे, जबकि करण का कारक चिह्न सेदिखाई दे रहा है.
2. पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं.
उपर्युक्त वाक्य में पेड़ से पत्तों के विलग होने का भाव  अभिव्यक्त हो रहा है. अतः सेअपादान कारक है.


75.

सर्वनाम पदबंध-
“जो शब्द या शब्द समूह वाक्य में सर्वनाम का काम करते हैं सर्वनाम पदबंध कहलाते हैं.”
सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ है- सर्व(सबका) नाम. व्याकरण में सर्वनाम ऐसे शब्दों को कहते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में संज्ञा के स्थान पर किया जाता है.
सर्वनाम के भेद-
क.    पुरुष वाचक सर्वनाम         मैं, हम, तुम, तू, आप, वह, यह.
ख.    निश्चय वाचक सर्वनाम       यह(समीपवर्ती), वह(दूरवर्ती).
ग.     अनिश्चय वाचक सर्वनाम     कोई(प्राणीवाची), कुछ(अप्राणीवाची).
घ.     प्रश्न वाचक सर्वनाम         कौन(प्राणीवाची), क्या(अप्राणीवाची).
ङ.      सम्बंध वाचक सर्वनाम       (प्रायः मिश्र वाक्यों में) जो------वह.
च.     निजवाचक सर्वनाम          आप(स्वयं, खुद).
पुरुषवाचक सर्वनाम के भेद-
वचन        उत्तम पुरुष          मध्यम पुरुष         अन्य पुरुष
एक वचन     मैं                 तुम, आप, तू        वह
बहुवचन            हम,हम सब         तुम सब            वे, वे सब
            हम लोग            तुम लोग
उपर्युक्त पुरुष वाचक सर्वनाम भेद वक्ता को केंद्र में रखकर किया गया है. जब वक्ता अपने लिये सर्वनाम का प्रयोग करता है तो उत्तम पुरुष होता है. जब वक्ता सामने उपस्थित व्यक्ति से बात करता है तो मध्यम पुरुष होता है और जब वक्ता किसी अनुपस्थित या दूरस्थित व्यक्ति के बारे में बात करता है तो अन्य पुरुष होता है.
विशेष-
1.हमका प्रयोग वक्ता कभी-कभी मैंके स्थान पर भी करता है.
76.
2.लिंग के आधार पर सर्वनाम शब्दों का रुप परिवर्तन नहीं होता है.
3.कारक के आधार पर सर्वनाम के रुप परिवर्तन होता है—
क.मैं-------मुझे(मेरे कोअशुद्ध रुप है)
ख.हम-----हमें(हमारे कोअशुद्ध रुप है)
ग.तू/तुम---तुझे/तुम्हें(तेरे को’/’तुम्हारे कोअशुद्ध रुप है)
घ.उन्होंने----- (उन नेअशुद्ध रुप है)
ड़.इन्होंने---(‘इन नेअशुद्ध रुप है)
उपर्युक्त सर्वनाम के अशुद्ध रुप हिंदी भाषा की क्षेत्रीय बोलियों में तो पाये जाते हैं, किंतु मानक हिंदी भाषा में इनका प्रयोग वर्जित है.







77.




4.   विशेषण पदबंध-
“जो शब्द या शब्द-समूह वाक्य में विशेषण का कार्य करते हैं वे विशेषण पदबंध कहलाते हैं”.
विशेषण से अभिप्राय ऐसे शब्दों से है जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं.  जिस संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं. वाक्य में विशेषण तीन रुपों में आते हैं-
क.विशेषण-विशेष्य-
जब विशेषण विशेष्य से पहले प्रयुक्त होता है तो उसे विशेषण-विशेष्य कहते हैं. जैसे-
एक किलो चीनी लाओ”.
उपर्युक्त वाक्य में एक किलोविशेषण विशेष्य से पहले आया है. अतः यहाँ विशेषण-विशेष्य है.
ख.विधेय विशेषण-
जब विशेषण विशेष्य के बाद प्रयुक्त होता है तो विधेय विशेषण होता है. जैसे-
“वह व्यक्ति योग्य है”.
उपर्युक्त वाक्य में योग्यविशेषण व्यक्तिविशेष्य के बाद आया है अतः यहाँ विधेय विशेषण है.
ग.प्रविशेषण-
जो शब्द विशेषणों की भी विशेषता बताते हैं उन्हें प्रविशेषण कहते हैं. जैसे-
“तुम बहुत अच्छे आदमी हो”.
उपर्युक्त वाक्य में बहुतशब्द अच्छेविशेषण की विशेषता बतला रहा है. अतः यहाँ प्रविशेषण है.
विशेषण के भेद-
      सामान्य रुप से विशेषण के चार भेद माने जाते हैं-
अ.    गुणवाचक विशेषण
आ.  परिमाणवाचक विशेषण
इ.      संख्यावाचक विशेषण
ई.      सार्वनामिक विशेषण
अ.गुणवाचक विशेषण-
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के गुण, आकार, रंग, आदि से सम्बंधित विशेषता बताते हैं वे गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं. गुणवाचक विशेषण के निम्नलिखित भेद हैं-
78.
क.    गुण के आधार पर-  अच्छा, बुरा, बुद्धिमान, परिश्रमी, आदि.
ख.    रंग के आधार पर- काला, पीला, आदि.
ग.     आकार के आधार पर-  चौकोर, गोल, बड़ा, छोटा, आदि.
घ.     स्वाद के आधार पर-  खट्टा, मीठा, नमकीन, कसैला, आदि.
ङ.      स्पर्श के आधार पर-  कठोर, नरम, खुरदुरा, आदि.
च.     गंध के आधार पर-  सुगंधित, दुर्गंधपूर्ण, आदि.
छ.    दिशा के आधार पर-  उत्तरी, पूर्वी, आदि.
ज.    दशा के आधार पर-  नया, पुराना, स्वस्थ, आदि.
झ.    अवस्था के आधार पर- युवा, बूढ़ा, आदि.
ञ.     स्थान के आधार पर-  ग्रामीण, शहरी, देशी, विदेशी, आदि.
त. काल के आधार पर- आधुनिक, पुरातन, आदि.
आ.परिमाणवाचक विशेषण-
जो शब्द संज्ञा के परिमाण या मात्रा सम्बंधी विशेषता बतलाते हैं उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं. परिमाणवाचक विशेषण ऐसी वस्तुओं की विशेषता बतलाते हैं जिनकी गिनती नहीं हो सकती, जो तौलकर या नापकर दी या ली जाती हैं. जैसे- दूध, चीनी, आदि.
परिमाणवाचक विशेषणों के दो भेद होते हैं-
1.निश्चित परिमाणवाचक विशेषण—
उदाहरण- दो किलो चीनी, पाँच मीटर कपड़ा.
2.अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण-
उदाहरण- थोड़ा सा दूध, चीनी कम.
इ.संख्यावाचक विशेषण-
जो शब्द संज्ञा की गिनती या उससे सम्बंधित विशेषता को बताते हैं, संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं. संख्यावाचक विशेषण के दो प्रमुख भेद हैं—
1.निश्चित संख्यावाचक विशेषण-
क. अंक बोधक-  एक, दो, तिहाई, सवा, आदि.
ख. क्रम बोधक-  पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, आदि.
ग. आवृत्ति बोधक-  इकहरा, दुगुना, चौगुना, पाँचगुना, आदि.
घ. समूह बोधक-  अकेला, दोनों, तीनों, चारों, आदि.
ड़. प्रत्येक बोधक-  हर वर्ष, हर महीने, आदि.
79.
2. अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण-
ऐसी वस्तुयें जिनकी गिनती तो हो सकती है किंतु वक्ता अनुमान के आधार पर थोड़े, कुछ, अनेक, आदि शब्दों का प्रयोग करता है तो वहाँ अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण होता है. जैसे-
कुछ लड़के खेल रहे थे.
परिमाणवाचक और संख्यावाचक विशेषणों में अंतर-
यदि विशेष्य गिनी जाने वाली वस्तु हो तो उसके साथ प्रयुक्त विशेषण संख्यावाचक माना जाता है अन्यथा उसे परिमाणवाचक विशेषण माना जाता है.
उदाहरण-
थोड़े बच्चे दिखाई दे रहे हैं. (संख्यावाचक विशेषण)
थोड़ा घी लाया हूँ.   (परिमाणवाचक विशेषण)

ई.सार्वनामिक विशेषण-
जो सर्वनाम, अपने सार्वनामिक रुप में ही संज्ञा के विशेषण के रुप में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं. सार्वनामिक विशेषणों को संकेतवाचक या निर्देशसूचक विशेषण भी कहते हैं.
उदाहरण-
ये मेरे मित्र हैं.
यह पुस्तक मोहन की है.
सार्वनामिक विशेषण और सर्वनाम में अंतर-
यदि सार्वनामिक विशेषणों का प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम शब्दों से पहले हो तो ये सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं और यदि अकेले संज्ञा के स्थान पर प्रयोग हो तो सर्वनाम कहलाते हैं.
उदाहरण-
यह लड़का बहुत चालाक है.  (सार्वनामिक विशेषण)
यह बहुत चालाक है.  (सर्वनाम)





80.

विशेषणों की तुलना- (Degrees of comparison)
संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता गुण या दोष के आधार पर कुछ कम या ज्यादा हो सकती है, जिन्हें तुलना करके देख सकते हैं. तुलना की दृष्टि से विशेषताओं की तीन अवस्थायें मानी जाती हैं-
1.   मूलावस्था
2.   उत्तरावस्था
3.   उत्तमावस्था
1मूलावस्था-
इसमें किसी प्रकार की कोई तुलना नहीं होती केवल विशेषण का सामान्य कथन होता है.
जैसे-
अरुण अच्छा लड़का है.
2.उत्तरावस्था-
इसमें विशेषता के आधार पर दो व्यक्तियों या पदार्थों की तुलना की जाती है.
जैसे-
आकार में रामायण से महाभारत वृहत्तर ग्रंथ है.
3.उत्तमावस्था-
इसमें दो से अधिक व्यक्तियों या पदार्थों की तुलना की जाती है.
जैसे-
महाभारत के पात्रों में भीष्म पितामह का चरित्र श्रेष्ठतम है.


81.

विशेषण शब्दों के रुपांतर-
विशेषण शब्दों के रुप वाक्य में आये संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के लिंग, वचन और कारक के अनुसार परिवर्तित होते हैं.
1.   आकारांत विशेषण जैसे- काला, अच्छा, बड़ा, आदि का परिवर्तन विशेष्य के अनुसार होता है.
उदाहरण-
क.    वह काला घोड़ा है.
ख.    वह काली गाय है.
ग.     वे काले घोड़े हैं.
घ.     वे काली गायें हैं.
पहले वाक्य में संज्ञा एक वचन पुर्ल्लिंग है तो विशेषण के कालारुप का प्रयोग हुआ है, दूसरे वाक्य में संज्ञा एक वचन स्त्रीलिंग है तो विशेषण के कालीरुप का प्रयोग हुआ है. ऐसे ही तीसरे वाक्य में संज्ञा बहुवचन पुर्ल्लिंग होन पर विशेषण के काले रुप का प्रयोग हुआ है और चौथे वाक्य में संज्ञा बहुवचन स्त्रीलिंग होने पर विशेषण का कालीरुप का प्रयोग हुआ है.
2.   विभक्ति से युक्त विशेष्य और सम्बोधन कारक के साथ आकारांत विशेषण में का हो जाता है.
उदाहरण-
लम्बे लड़कों को बैठा दो.
अरे! छोटे लड़कों इधर आना.
3.   जब किसी वाक्य में एक से अधिक विशेष्य हों तो विशेषण का रुप विशेषण के पास वाले विशेष्य के अनुसार परिवर्तित होता है.
उदाहरण-
बड़े- बड़े लड़के और लड़कियाँ यहाँ पढ़ते हैं.
यहाँ कागज और पेंसिलें सस्ती हैं.
4.   जब एक विशेष्य के कई विशेषण हों तो सभी विशेषणों के रुप विशेष्य के लिंग और वचन के अनुसार परिवर्तित होते हैं.
उदाहरण-
यहाँ नीले, पीले, हरे, लाल, गुब्बारे हैं.
82.
5.   जब एक से अधिक व्यक्तिवाचक संज्ञा या सर्वनाम “और” द्वारा जुड़े होते हैं तब विशेषण का रुप पुर्ल्लिंग बहुवचन में होता है.
उदाहरण-
रमेश और गीता अच्छे विद्यार्थी हैं.
अब मोहन और शीला बड़े हो गये हैं.
6.   सार्वनामिक विशेषणों के रुप दो प्रकार से परिवर्तित होते हैं
क.    संकेतवाचक सार्वनामिक विशेषण(यह, वह) विशेष्य के वचन के अनुसार परिवर्तित होते हैं.
उदाहरण-
यह लड़का कल भी आया था.
ये लड़के कल भी आये थे.
ख.    सम्बंधवाचक सार्वनामिक विशेषण(मेरा, तुम्हारा, उसका, आदि) लिंग और वचन दोनों के अनुसार परिवर्तित होते हैं.
उदाहरण-
मेरा भाई अध्यापक है.
मेरे भाई अध्यापक हैं.
मेरी बहन अध्यापिका है.
7.   आकारांत विशेषणों के अतिरिक्त अन्य विशेषण  यथावत रहते हैं. जैसे- कीमती, ऐतिहासिक,
मासिक, योग्य, आदि.
8.   कुछ तत्सम विशेषणों का प्रयोग स्त्रीलिंग रुपों में ही किया जाता है. जैसे- बुद्धिमती, विदुषी, रुपवती, आदि.
विशेषणों का संज्ञा रुप में प्रयोग-
कभी-कभी विशेषणों का प्रयोग संज्ञा के रुप में किया जाता है.
उदाहरण-
वीरों की पूजा कौन नहीं करता.
छोटों को प्यार देने की आवश्यकता होती है.
83.

वीरोंऔर छोटोंशब्द संज्ञा पद माने जायेंगे और इनके रुप भी संज्ञा के समान लिंग, वचन और कारक के आधार पर परिवर्तित होंगे.
विशेषणों की रचना- (व्युत्पन्न विशेषण)
कुछ शब्द मूल रुप से ही विशेषण होते हैं , किंतु कुछ विशेषणों की रचना प्रत्यय, उपसर्ग या समास का प्रयोग करके की जाती है. जो विशेषण बनाये जाते हैं, उन्हें व्युत्पन्न विशेषण कहते हैं.
उदाहरण-
1.   उपसर्ग से निर्मित विशेषण-   अपमान, दुर्बल, नीरोग, आदि.
2.   प्रत्यय से निर्मित विशेषण-   धनी, भूखा, पानवाला, भारतीय, आदि.
3.   संज्ञा शब्दो से निर्मित विशेषण-  अर्थ से आर्थिक, धर्म से धार्मिक, वन से वन्य, समुदाय से सामुदायिक, आदि.
4.   सर्वनाम से निर्मित विशेषण- यह से ऐसा, मैं से मुझ सा, तुम से तुमसा, आप से आपसा, आदि.
5.   क्रिया से निर्मित विशेषण- पत से पतित, बेचना से बिकाऊ, भूलना से भुलक्कड़, भागना से भगोड़ा, आदि.
6.   अव्यय शब्दों से निर्मित विशेषण- ऊपर से ऊपरी, आगे से अगला, पीछे से पिछला, भीतर से भीतरी.










84.
 क्रिया-विशेषण पदबंध-
“जो शब्द या शब्द समूह वाक्य में क्रिया की विशेषता बताते हैं क्रिया विशेषण पदबंध कहलाते हैं”.
क्रिया विशेषण चार प्रकार के होते हैं-
1.   रीतिवाचक क्रिया विशेषण
2.   परिमाणवाचक क्रिया विशेषण
3.   कालवाचक क्रिया विशेषण
4.   स्थानवाचक क्रिया विशेषण
1.रीतिवाचक क्रिया विशेषण-
रीतिवाचक क्रिया विशेषण वह विशेषण है जो क्रिया की रीति या विधि से संबद्ध विशेषता का बोध कराता है. यह बताता है कि क्रिया कैसे या किस प्रकार हो रही है.
उदाहरण-
प्रथम आने के लिये राम तेजी से दौड़ा.
भक्तजनों ने कथा ध्यानपूर्वक सुनी.
2.परिमाणवाचक क्रिया विशेषण-
परिमाणवाचक क्रिया विशेषण वह क्रिया विशेषण हैं जो क्रिया के परिमाण या मात्रा से संबद्ध विशेषता का बोध कराते हैं. यह बताता है कि क्रिया मात्रा में कितनी हुई.
उदाहरण-
थोड़ा-थोड़ा अभ्यास कीजिए.
वह अधिक बोलता है.

85.

3.कालवाचक क्रिया विशेषण-
कालवाचक क्रिया विशेषण वह क्रिया विशेषण हैं जो क्रिया के काल से संबद्ध विशेषता का बोध कराते हैं. यह तीन प्रकार का होता है-
क.    कालबिंदु वाचक-  आज, अब, जब, अभी, कभी, सायं, प्रातः.
ख.    अवधि वाचक-   सदैव, दिनभर, आजकल, नित्य, आदि.
ग.     बारम्बारता वाचक- प्रतिदिन, रोज, हर बार, बहुधा, आदि.
4.स्थानवाचक क्रिया विशेषण-
स्थानवाचक क्रिया विशेषण वह क्रिया विशेषण हैं जो क्रिया के स्थान से संबद्ध विशेषता का बोध कराते हैं.
यह दो प्रकार के होते हैं-
क.    स्थितिवाचक-  आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, यहाँ, सर्वत्र, आदि.
ख.    दिशावाचक-  इधर, उधर, नीचे की ओर, ऊपर की तरफ, दोनों ओर, चारों ओर, आदि.
क्रिया विशेषणों की रचना-
क्रिया विशेषण प्रायः अव्ययी शब्द होते हैं जिनमें वाक्य में प्रयोग करते समय लिंग, वचन और कारक के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं होता है. कुछ क्रिया विशेषण संज्ञा, आदि शब्दों में प्रत्यय लगाकर या समास रचना द्वारा बनाये जाते हैं, किंतु उनमें भी लिंग, वचन और कारक के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं होता है.
रचना के आधार पर क्रिया विशेषणों के दो भेद हैं-
क.    मूल क्रिया विशेषण- ये मूल रुप में ही क्रिया विशेषण होते हैं. जैसे- आज, अब, यहाँ, वहाँ, आदि.
ख.    यौगिक क्रिया विशेषण- ये मूल रुप में संज्ञा, आदि होते हैं और किसी न किसी प्रत्यय या निपात का सहारा लेते हैं या किसी शब्द के साथ मिलकर समास या युग्मक बनकर आते हैं. जैसे- ध्यानपूर्वक, स्वभावतः, धीरे-धीरे, अनजाने, दिन-रात, आदि.

86.

प्रविशेषण-
विशेषणों की भाँति क्रिया विशेषण में भी प्रविशेषणों का प्रयोग होता है.
उदाहरण-
पी0 टी0 ऊषा बहुत तेज दौड़ती है.
आपने आज बहुत ही मधुर गाया.













87.


क्रिया पदबंध-
“जो शब्द या शब्द समूह वाक्य में किसी कार्य के होने या करने का बोध कराते हैं, वो क्रिया पदबंध कहलाते हैं”. 
क्रिया का मूल रुप धातु कहलाता है. जैसे- लिख, पढ़, जा, खा, गा, रो, पा, आदि. इन्हीं से क्रमशः लिखना, पढ़ना, जाना, खाना, गाना, रोना, पाना, आदि क्रियायें बनती हैं. क्रिया के रुप वाक्य में कर्त्ता, कर्म और भाव के अनुरुप परिवर्तित होते हैं. साथ ही क्रिया पदबंध से यह भी ज्ञात होता है कि वाक्य में कार्य किस काल(भूतकाल, वर्तमान काल, भविष्यत काल) में सम्पन्न हुआ है.
क्रिया के भेद-
1.   अकर्मक क्रिया
2.   सकर्मक क्रिया
1.अकर्मक क्रिया-
जिन क्रियाओं के कार्य का फल सीधे कर्त्ता में ही पाया जाता है, वे अकर्मक क्रियायें कहलाती हैं. इन क्रियाओं के रुप परिवर्तन कर्त्ता के लिंग और वचन के अनुसार होते हैं. जैसे-
            मोर नाचता है.
उपर्युक्त वाक्य में मोरकर्त्ता है और नाचताक्रिया पदबंध. मोरएक वचन, पुर्ल्लिंग है उसी के अनुसार क्रिया का रुप परिवर्तित हुआ है.
2.सकर्मक क्रिया-
जिन क्रियाओं का फल कर्त्ता को छोड़कर कर्म पर पड़ता है, वो सकर्मक क्रियायें कहलाती हैं. इन क्रियाओं के रुप परिवर्तन कर्त्ता की जगह कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होते हैं. जैसे-
      वाल्मीकि जी ने रामायण लिखी.
उपर्युक्त वाक्य में रामायणकर्म है उसी के अनुसार लिखनाक्रिया का रुप परिवर्तित हो लिखीबना है.
88.

सकर्मक क्रियाओं के दो भेद होते है-
क.    एक कर्मक क्रिया
ख.    द्विकर्मक क्रिया
क.एक कर्मक क्रिया-
जिस वाक्य में क्रिया का एक ही कर्म हो, उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं. जैसे-
            हाथी गन्ना तोड़ता है.
ख.द्विकर्मक क्रिया-
जिस वाक्य में क्रिया के दो कर्म होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं. जैसे-
माला ने मोहन को पुस्तक दी.
प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के भेद-
अ.    सामान्य क्रिया
आ.  संयुक्त क्रिया
इ.      नाम धातु क्रिया
ई.      प्रेरणार्थक क्रिया
उ.      पूर्वकालिक क्रिया
अ.सामान्य क्रिया-
जब वाक्य में केवल एक क्रिया का प्रयोग होता है, तब वहाँ सामान्य क्रिया होती है.
उदाहरण-
            आप आये.
            वह नहाया.
89.

आ.संयुक्त क्रिया-
जब वाक्य में दो या दो से अधिक क्रियाओं का साथ-साथ प्रयोग होता है तब वहाँ संयुक्त क्रिया होती है.
उदाहरण-
सविता महाभारत पढ़ने लगी.
वह खाना खा चुका.
इ.नाम धातु क्रिया-
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों से बने क्रियापद नाम धातु क्रिया कहलाते हैं. जैसे- हथियाना, शर्माना, अपनाना, झुठलाना, आदि.
ई.प्रेरणार्थक क्रिया-
जिस क्रिया से यह पता चले कि कर्त्ता स्वयं कार्य को न करके किसी अन्य को उस कार्य को करने की प्रेरणा देता है, वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है. ऐसी क्रियाओं के दो कर्त्ता होते हैं-
1.   प्रेरक कर्त्ता-  प्रेरणा प्रदान करने वाला
2.   प्रेरित कर्त्ता-  प्रेरणा लेने वाला
उदाहरण-
श्यामा राधा से पत्र लिखवाती है.
उ.पूर्वकालिक क्रिया-
किसी क्रिया से पूर्व यदि कोई अन्य कार्य सम्पन्न होने वाली क्रिया प्रयुक्त होती है, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है. जैसे-
राम चित्र देखकर हँसने लगा.
पूर्वकालिक क्रिया या तो क्रिया के सामान्य रुप में प्रयुक्त होती है या धातु के अंत में कर’, ‘करकेलगा देने से पूर्वकालिक क्रिया बन जाती है.
90.
रंजक क्रियायें-
जब कोई क्रिया मुख्य क्रिया से जुड़ जाती है तो वह अपना अर्थ खोकर उस मुख्य क्रिया में एक प्रकार की नवीनता और विशेषता ला देती है, साथ ही एक विशिष्ट अर्थ का बोध कराती है. ऐसी क्रियाओं को रंजक क्रिया कहते हैं. जैसे-
मैं पढ़ने लगा हूँ.      (पढ़ना+लगना+होना)
उपर्युक्त वाक्य में तीन क्रियायें एक साथ आयी हैं. रंजक क्रियाओं को वाक्यों में भाव को पूर्ण रुप से स्पष्ट करने लिये प्रयुक्त किया जाता है.














90.
वाच्य-बोध-
क्रिया पदबंध के द्वारा वाक्य में क्रिया के द्वारा सम्पादित विधान का विषय(कर्त्ता, कर्म या भाव) का बोध होता है.
वाच्य के तीन भेद होते हैं-
1.   कर्तृ वाच्य   (Active Voice)
2.   कर्म वाच्य   (Passive Voice)
3.   भाववाच्य    (Impersonal Voice)
1.   कर्तृ वाच्य-
जब वाक्य में कर्त्ता प्रमुख हो और क्रिया का रुप कर्त्ता के लिंग और वचन के अनुसार परिवर्तित हो, तो उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं.
         घोड़ा दौड़ता है.
         बच्चे पढ़ते हैं.
2.   कर्म वाच्य-
जब वाक्य में कर्म की प्रमुखता हो और क्रिया के रुप कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार परिवर्तित हों, तो उसे कर्म वाच्य कहते हैं.
उदाहरण-
      वाल्मीकि जी ने रामायण लिखी.
      माला ने मोहन को पुस्तक दी.
3.   भाव वाच्य-
  जब वाक्य में कर्त्ता या कर्म की प्रमुखता न होकर , केवल भाव प्रमुख होता है तो उसे भाव वाच्य कहते हैं. इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है. साथ ही प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाव वाच्य में प्रयुक्त होते हैं. इसमें क्रिया सदैव पुर्ल्लिंग, अन्य पुरुष के एक वचन की होती है.
उदाहरण-
      रमा से हँसा नहीं जाता.
      श्रेय से खेला नहीं जाता.
91.




काल-बोध-
क्रिया पदबंध के द्वारा ज्ञात होता है कि वाक्य में कार्य किस काल में सम्पन्न हुआ है. काल के तीन प्रमुख भेद होते हैं-
1.   भूत काल     (Past Tense)
2.   वर्तमान काल  (Present Tense)
3.   भविष्यत काल (Future Tense)
1.भूत काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा ज्ञात हो कि कार्य भूतकाल में सम्पन्न हो चुका है; जैसे- मोहन आया. वाक्य में मोहन के आने का कार्य भूतकाल में सम्पन्न हो चुका है. भूत काल के तीन भेद हैं-
क.    सामान्य भूतकाल     (Indefinite Past Tense)
ख.    अपूर्ण भूतकाल       (Continuous Past Tense)
ग.     संदिग्ध भूतकाल            (Doubtful Past Tense)
क.सामान्य भूतकाल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा बीते हुये समय कार्य पूरा होने का बोध होता है तो सामान्य भूतकाल होता है. जैसे- मोहन आया’.
ख.अपूर्ण भूतकाल-
जब वाक्य में वक्ता के कथन से यह ज्ञात हो, कि भूतकाल की क्रिया वक्ता के सामने पूर्ण नहीं हुई थी. तब अपूर्ण भूतकाल होता है. जैसे-  मोहन खेल रहा था’.
ग.संदिग्ध भूतकाल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा भूतकाल का बोध तो हो किंतु कार्य के होने में संदेह हो, तब संदिग्ध भूतकाल होता है. जैसे- मोहन आ चुका होगा’.
2.वर्तमान काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा ज्ञात हो कि कार्य वर्तमान काल में सम्पन्न हुआ है या हो रहा है तब वर्तमान काल होता है. वर्तमान काल के तीन भेद हैं-
क.    सामान्य वर्तमान काल (Indefinite Present Tense)
ख.    अपूर्ण वर्तमान काल   (Continuous Present Tense)
ग.     संदिग्ध वर्तमान काल  (Doubtful Present Tense)


92.
क.सामान्य वर्तमान काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा कार्य वर्तमान काल में सामान्य रुप से होने का बोध हो तब सामान्य वर्तमान काल होता है. जैसे- मोहन आता है’.
ख.अपूर्ण वर्तमान काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा कार्य की अपूर्णता का बोध होता है अर्थात कार्य वर्तमान समय में अभी चल रहा है पूर्ण नहीं हुआ है, तब अपूर्ण वर्तमान काल होता है. जैसे-
            मोहन पत्र लिख रहा है’.
ग.संदिग्ध वर्तमान काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा वर्तमान में कार्य होने में सन्देह हो तब संदिग्ध वर्तमान काल होता है. जैसे- 
      मोहन आ रहा होगा’.
3.भविष्यत काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा ज्ञात हो कि कार्य भविष्य में सम्पन्न होगा , तब भविष्यत काल होता है. भविष्यत काल के भी तीन भेद होते हैं-
क.    सामान्य भविष्यत काल
ख.    अपूर्ण भविष्यत काल
ग.     संदिग्ध भविष्यत काल
क.सामान्य भविष्यत काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा कार्य सामान्य रुप से भविष्य में सम्पन्न होने का बोध हो तो सामान्य भविष्यत काल होता है. जैसे-
            मोहन आयेगा.
ख.अपूर्ण भविष्यत काल-
जब वक्ता के कथन के द्वारा यह ज्ञात हो कि कार्य भविष्य में हो रहा होगा तो अपूर्ण भविष्यत काल होता है. जैसे-
      कल मोहन मैच खेल रहा होगा.
ग.संदिग्ध भविष्यत काल-
जब वाक्य में क्रिया के द्वारा कार्य का भविष्य में पूर्ण होने का संदेह बोध हो, तब संदिग्ध भविष्यत काल होता है. जैसे-
      शायद मोहन कल आये.
93.
वाक्य
“व्याकरण सम्मत निश्चित अर्थ की अभिव्यक्ति कराने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहा जाता है”.
“वाक्य भाषा-व्यवहार की लघुतम इकाई है”. अर्थात हम अपनी बात दूसरे व्यक्ति तक वाक्य या वाक्यों के माध्यम से ही पहुँचाते हैं.
वाक्य के दो अंश अवश्य होते हैं एक उद्देश्य, दूसरा विधेय. उद्देश्य से अभिप्राय है जिसके बारे में कुछ कहा जा रहा है और विधेय से अभिप्राय- जिसके बारे में कुछ कहा जा रहा है उससे संबंधित जानकारी दी जाती है. जैसे-
बच्चा मैदान में खेल रहा है’. वाक्य में बच्चे के बारे में कहा जा रहा है, इसलिये बच्चा उद्देश्य हुआ और मैदान में खेल रहा है शब्द-समूह वाक्य के कर्म के बारे में बता रहा है, अतः यह वाक्य का विधेय अंश हुआ.
उद्देश्य और विधेय अंश स्वयं कई घटकों(शब्द या शब्द-समूह) से मिलकर बनते हैं. ये घटक एक विशेष क्रम से एक के बाद एक आते हैं और इनके बीच कोई ना कोई व्याकरणिक सम्बंध रहता है. जैसे-
बच्चा मैदान में खेल रहा है’. वाक्य में पहले कर्त्ता(बच्चा), फिर क्रिया विशेषण(मैदान में), फिर क्रिया(खेल रहा है) आया है. वाक्य के इन घटकों के बीच लिंग, वचन, पुरुष सम्बंधी सम्बंध भी रहता है. जैसे- बच्चाके साथ क्रिया खेल रहा हैही आयेगी खेल रही हैया खेल रहे हैंनहीं आयेगी.
वास्तव में जो घटक मिलकर वाक्य की रचना करते हैं पद बंध कहलाते हैं.
वाक्य के प्रमुख तीन भाग होते हैं-
कर्त्ता               कर्म               क्रिया
बालक              गेंद से             खेल रहा है.
बालक गेंद से खेल रहा है इसलिये बालककर्त्ता हुआ क्योंकि बालक कर्म कर रहा है. बालक क्या कर्म रहा है? बालक गेंद से खेल रहा है, इसलिये गेंद कर्म हुआ. बालक गेंद से क्या कर रहा? खेल रहा है. इसलिये खेलना क्रिया हुई.
बालक को संज्ञा कहा जाता है. जब बालक के स्थान पर वहकहा जायेगा तो वह सर्वनाम होगा. जैसे-
      वह खेल रहा है.
अर्थात जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं, वह सर्वनाम कहलाते हैं.
जो शब्द संज्ञा, सर्वनाम, कर्म, क्रिया की विशेषता बताते हैं, वह विशेषण होते हैं. जैसे-
      छोटा बालक गेंद खेल रहा है.
उपर्युक्त वाक्य में छोटाशब्द बालक की विशेषता बता रहा है.

94.
ऐसे ही-
      बालक सफेद गेंद से खेल रहा है.
उपर्युक्त वाक्य में सफेदशब्द गेंद की विशेषता बता रहा है.
और-
      वो दोनों खेल रहे हैं. वाक्य में दोनों शब्द वोसर्वनाम की विशेषता बता रहे हैं.
और-
      बच्चे अच्छा खेल रहे हैं. वाक्य में अच्छाशब्द क्रिया की विशेषता बता रहे हैं.


















95.




संरचना की दृष्टि से वाक्य के भेद-
संरचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद होते हैं-
1.   सरल वाक्य
2.   संयुक्त वाक्य
3.   मिश्र वाक्य
संयुक्त और मिश्र वाक्यों में एक से अधिक सरल वाक्य होते हैं. इन सरल वाक्यों का विश्लेषण करते समय तकनीकी नाम उपवाक्यप्रयोग किया जाता है.
                        वाक्य                                           
एक उपवाक्य                                            एक से अधिक उपवाक्य
(=सरल वाक्य)                         परस्पर स्वतंत्र             परस्पर आश्रित
                              उपवाक्य                  उपवाक्य
                              (=संयुक्त वाक्य)            (=मिश्र वाक्य)
1.सरल वाक्य-
सरल वाक्य के लघुतम रुप में दो पदबंध कर्त्ता और क्रिया अवश्य होते हैं. इसके साथ ही सरल वाक्य के विस्तृत रुप में कर्म, विशेषण, क्रिया विशेषण पदबंध भी हो सकते हैं; लेकिन वाक्यों में क्रिया एक ही रहती है.
उदाहरण-
      लड़का खेल रहा है.
      लड़का मैदान में खेल रहा है.
उपर्युक्त दोनों ही वाक्य सरल वाक्य हैं.
2.संयुक्त वाक्य-
संयुक्त वाक्य दो या दो से अधिक सरल वाक्यों को मिलाकर बनते हैं, जिनकी अपनी स्वतंत्र सत्ता भी होती है.
संयुक्त वाक्यों के चार भेद होते हैं-
क.    योजक संयुक्त वाक्य
ख.    वियोजक संयुक्त वाक्य
ग.     विरोधक संयुक्त वाक्य
घ.     परिणामी संयुक्त वाक्य

96.
क.योजक संयुक्त वाक्य-
जब दो सरल वाक्यों को योजक अव्ययों के द्वारा जोड़े जाने का भाव होता है, तब योजक संयुक्त वाक्य होता है. योजक अव्यय हैं- और, तथा, एवम, बल्कि, अपितु, , आदि.
उदहारण -
रात सुनसान थी और चारों ओर अँधेरा था.
ख.वियोजक संयुक्त वाक्य-
जब दो सरल वाक्यों को या, अथवा, ‘या-----वा’, कि, आदि, अव्यय शब्दों द्वारा जोड़ा जाता है और दो कथनों में से किसी एक को चुनने का विकल्प रखा जाता है, तब वियोजक संयुक्त वाक्य होता है.
उदाहरण-
      तुम जा रहे हो या मैं जाऊँ.
ग.विरोधक संयुक्त वाक्य-
जब दो सरल वाक्यों के कथनों में परस्पर विरोध का भाव रहता है और दोनों वाक्यों को किंतु, परंतु, लेकिन, मगर, पर, आदि विरोधवाची समुच्चय बोधक अव्ययों से जोड़ा जाता है, तब विरोधक संयुक्त वाक्य कहलाता है.
उदाहरण-
      सत्य बोलो परंतु कटु सत्य न बोलो.
घ.परिणामी संयुक्त वाक्य-
जब दो सरल वाक्यों के कथनों में परस्पर कार्य-कारण सम्बंध होता है अर्थात एक वाक्य से किसी कारण का बोध हो और दूसरा वाक्य उस कारण का परिणाम अभिव्यक्त करे, तब उसे परिणामी संयुक्त वाक्य कहते हैं. दोनों वाक्यों को जोड़ने में प्रायः इसलिये, सो, आदि अव्ययों का प्रयोग होता है.
उदाहरण-
आज मुझे बहुत काम है इसीलिये मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकूँगा.
3.मिश्र वाक्य-
जब दो या दो से अधिक सरल वाक्य मिलकर किसी विषय पर पूर्ण विचार करते हैं तब वे मिश्र वाक्य कहलाते हैं. मिश्र वाक्य में एक वाक्य प्रमुख होता है, शेष वाक्य प्रमुख वाक्य के कथन की पुष्टि, समर्थन, स्पष्टता अथवा विस्तार हेतु ही आते हैं; इनकी अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं होती. गौण वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-


97.
क.    संज्ञा उपवाक्य
ख.    विशेषण उपवाक्य
ग.     क्रिया-विशेषण उपवाक्य
क.संज्ञा उपवाक्य-
जब मिश्र वाक्य में गौण उपवाक्य किसी संज्ञा या सर्वनाम के स्थान पर आता है, तब वह संज्ञा उपवाक्य कहलाता है.
उदाहरण-
      वह चाहता है कि मैं यहाँ कभी न आऊँ.
                  (संज्ञा उपवाक्य)
ख.विशेषण उपवाक्य-
जब मिश्र वाक्य में गौण उपवाक्य मुख्य वाक्य की संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं तब उसे विशेषण उपवाक्य कहते हैं.
उदाहरण-
जो घड़ी मेज पर रखी है, वह मुझे पुरस्कार स्वरुप मिली है.
(विशेषण उपवाक्य)
ग.क्रिया विशेषण उपवाक्य-
जब मिश्र वाक्य में गौण उपवाक्य मुख्य वाक्य की क्रिया की विशेषता बताते हैं तब उसे क्रिया विशषण उपवाक्य कहते हैं.
उदाहरण-
जब वह मेरे पास आया तब मैं सो रहा था.
(क्रिया विशेषण उपवाक्य)
98.








अर्थ की दृष्टि से वाक्य के भेद-
अर्थ की दृष्टि से वाक्य के आठ भेद होते हैं-
क.    विधान वाचक(निश्चय वाचक) वाक्य
ख.    विधिवाचक वाक्य
ग.     इच्छा वाचक वाक्य
घ.     संदेह वाचक वाक्य
ङ.      संकेत वाचक वाक्य
च.     उद्गार वाचक वाक्य
छ.    प्रश्न वाचक वाक्य
ज.    नकारात्मक वाक्य
क.विधान वाचक(निश्चय वाचक) वाक्य-
विधान वाचक वाक्यों द्वारा श्रोता एवम पाठक को तथ्यपूर्ण ज्ञान उपलब्ध कराया जाता है. जैसे-
      लाल किला दिल्ली में है’.
ख.विधिवाचक वाक्य-
विधिवाचक वाक्यों के द्वारा वक्ता यह आशा करता है कि श्रोता सुनने के बाद, तुरंत या निकट भविष्य में कुछ करेगा. वक्ता और श्रोता के पारस्परिक सम्बंध के आधार पर इसके दो भेद हो
क.आज्ञार्थक वाक्य-
जब वक्ता अपने किसी छोटे व्यक्ति को कोई काम करने का आदेश या आज्ञा देता है, तब आज्ञार्थक वाक्य होता है.
उदाहरण-
अब खेलना बंद करो और यहाँ बैठकर पढ़ो.
ख.प्रार्थनार्थक वाक्य-
जब वक्ता अपने से किसी बड़े व्यक्ति से किसी काम के करने के लिये प्रार्थना, अनुरोध या निवेदन करता है, तब प्रार्थनार्थक वाक्य होता है.
उदाहरण-
दादाजी आप बच्चे के जन्मदिन पर अवश्य आना.
ग.इच्छावाचक वाक्य-
जब वक्ता श्रोता की शुभकामना की भावना अभिव्यक्त करता है, तब इच्छावाचक वाक्य होता है.

99.
उदाहरण-
आपकी यात्रा मंगलमय हो.
घ.संदेहवाचक वाक्य-
जिस वाक्य में वक्ता को क्रिया के सम्पन्न होने में कुछ संदेह हो, तो वह संदेहवाचक वाक्य होता है.
उदाहरण-
मोहन इस समय आता होगा.
ङ.संकेतवाचक वाक्य-
सूचना प्रधान वाक्यों में कभी-कभी विधानका मुख्यांश कार्य सिद्धि के लिये किसी शर्त के पूरे होने की अपेक्षा रखता है. शर्तको संकेतभी कहते हैं.
उदाहरण-
तुम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होगे, यदि अभी से परिश्रम करोगे.
                                    शर्त
च.उद्गार वाचक वाक्य-
जब वक्ता अपने मन के भावों को स्वतः ही अभिव्यक्त करता है, तब उद्गार वाचक वाक्य होता है. इन वाक्यों के कहते समय आवश्यक नहीं है कि श्रोता सामने हो ही. ऐसे वाक्यों को कहते समय प्रायः विस्मयादि बोधक अव्ययों का प्रयोग होता है.
उदाहरण-
      कितना रमणीक दृश्य है.
छ.प्रश्न वाचक वाक्य-
प्रश्न वाचक वाक्यों के मूल में वक्ता श्रोता से कुछ जानने की अपेक्षा रखता है. विधान वाचक वाक्य में प्रश्न वाचक अंश(जैसे- कौन, क्या, क्यों, किसलिये, किसको, आदि) लगाकर प्रश्न वाचक वाक्य बनते हैं.
उदाहरण-
      इस समय कितने बजे हैं?
कभी-कभी प्रश्न वाचक अंश न होने पर भी वाक्य में प्रश्नात्मकता आती है. विशेषतः जब अनुतान आरोही हो और अंत में सर्वोच्च आरोह हो. जैसे- विशेष अनुतान में कहा गया वाक्य “वह कल जा रहा है”. “क्या वह कल जा रहा है”? का अर्थ ही अभिव्यक्त करता है.



100.
ज.नकारात्मक वाक्य-
उद्गार वाक्य को छोड़कर किसी भी वाक्य-प्रकार का नकारात्मक वाक्य हो सकता है. नकारात्मक स्थिति में नहीं, , मत का प्रयोग होता है.
उदाहरण-
      मोहन इस समय नहीं खेल रहा है.
नकारात्मक की अन्य विधियाँ हैं-
1.   प्रश्न बोधक शब्दों द्वारा     -     क्या मैं यह अपमान कभी भूल सकता हूँ?
2.   भला’, ‘थोड़े’, द्वारा-         मैं भला यह अपमान भूल सकता हूँ.
3.   व्यंग्य द्वारा-              अरे आप, आप तो पूरे युधिष्ठर हैं.
4.   शायद’, ‘मुश्किल’, द्वारा-     वह शायद ही कभी यहाँ आता हो.

















101.


लघु वाक्य-
जब कभी दो व्यक्ति आपस में बातें करते हैं तो उनके वाक्य बहुत ही लघु होते हैं. कभी-कभी एक या दो शब्द के, जो वाक्य के मानक रुप पर खरे नहीं उतरते. किंतु फिर भी, हिंदी साहित्य में वे मान्य हैं, विशेष रुप से नाटक, कहानी, उपन्यास में. कथोपकथनों के अंशों में प्रायः लघु वाक्यों का प्रयोग होता है.
उदाहरण-
मोहन- (सामने से आते हुये सोहन से) नमस्ते!
सोहन- (जरा रुक कर) नमस्ते! कहो सोहन, क्या हाल है?
मोहन- सब आपकी कृपा है. आप दिल्ली से कब लौटे?
सोहन- कल ही. और तुम?
मोहन- मैं! मैं तो आज सुबह ही लौटा हूँ.
उपर्युक्त वार्त्तालाप में नमस्ते’. लघु वाक्य है. सामाजिक व्यवहार में प्रायः अभिवादन करते समय , शिष्टाचार रुप में लघु वाक्यों का प्रयोग होता है.
कल ही. भी लघु वाक्य है, लेकिन इसे पूरा किया जा सकता है, “मैं कल ही दिल्ली से लौटा हूँ”.
अर्थात कथोपकथन को संक्षिप्त रुप देने के लिये लघु वाक्यों का प्रयोग किया जाता है अन्यथा उसमें पूर्ण वाक्य का रुप अंतर्निहित होता है.












102.


विराम चिह्न-
“अपने कथन को संप्रेषणीय व स्पष्टता से कहने के लिये वाक्य एवम वाक्यों के बीच कुछ चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, इन्हें विराम-चिह्न कहते हैं”. विराम चिह्नों का प्रयोग वाक्य में तीन कारणों के लिये होता है-
1.   अर्थ में स्पष्टता लाने के लिये
2.   उच्चारण की सुविधा के लिये
3.   सही बलाघात और अनुतान के लिये
विराम चिह्नों के भेद-
             i.     पूर्ण विराम  (.)            (Full Stop)
            ii.     अर्द्ध विराम (;)            (Semi Colon)
            iii.     अल्प विराम (,)            (Comma)
            iv.     प्रश्न सूचक चिह्न (?) (Sign of Interrogation)
            v.     विस्म्यादि बोधक चिह्न  (!)  (Sign of Exclamation)
            vi.     संयोजक चिह्न   (-)        (Hyphen)
           vii.     निर्देशन चिह्न  ‌‌(‌--)         (Dash)
          viii.     उद्धरण चिह्न  क.इकहरे उद्धरणचिह्न  (‘ ‘ ) ख.दोहरे उद्धरण चिह्न (“ “ )     (Inverted Commas)
            ix.     विवरण चिह्न (:‌-)    (Colon+Dash)
            x.     कोष्ठक चिह्न  { ( ) }            (Bracket)
            xi.     हंसपद चिह्न  (^)          (Sign of leftword)
           xii.     उप विराम चिह्न (:)        (Colon)
          xiii.     संक्षेप सूचक या लाघव चिहन (0)    (Abbreviation)
          xiv.     लोप निर्देश चिह्न  (-------------)
           xv.     समानता सूचक  (=)



103.  






103.
























No comments:

Post a Comment