Saturday, February 25, 2017


नाम मिटे तो ऐसे कि जैसे नदी सागर हो गयी।
यश ढ़ले तो ऐसे कि जैसे सूरज ढ़ले औ' चाँद निकले।।

              डॉ0 मंजूश्री गर्ग





कितनी निर्मोही, निर्दयी नदी हो गयी,
वनांचल छोड़ सागर की हो गयी।

      डॉ0 मंजूश्री गर्ग












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