Monday, June 19, 2017


भारतीय फिल्म का जन्म और विकास



डॉ0 मंजूश्री गर्ग

सन् 1896 ई0 में फ्रेंच निर्माता जार्ज मिलीज ने कथा फिल्मों की शुरूआत की और सिन्ट्रेला(1899) और ट्रिप टू मून(1902) जैसी फिल्में बनाईं. भारत में भी इन्हीं वर्षों में फिल्मों का निर्माण कार्य शुरू हुआ. सावे दादा(हरिश्चन्द्र सखाराम भाटवडेकर) पहले भारतीय फिल्म निर्माता कहे जा सकते हैं, जिन्होंने द रश्लर्स तथा मैन एंड मंकी जैसी फिल्में सन् 1899 ई0 में बनाईं. किन्तु दादा साहब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक माना जाता है.

दादा साहब फालके(धुन्धीराज गोविंद फालके) ने सन् 1913 ई0 में पहली भारतीय मूक फीचर फिल्म राजा हरिश्चन्द्र का निर्माण किया. यद्यपि राजा हरिश्चन्द्र से पहले पुंडलीक नाम की फिल्म बन चुकी थी, किन्तु निर्माण की दृष्टि से वह आधी ब्रिटिश थी. इसलिये राजा हरिश्चन्द्र को ही पहली भारतीय फीचर फिल्म माना जाता है. सन् 1931 ई0 में खान बहादुर अर्देशर ईरानी ने पहली भारतीय सवाक् कथा फिल्म आलम आरा का निर्माण किया. इसमें मुख्य भूमिकायें पृथ्वीराज कपूर, मास्टर विठ्ठल, जुबेदा, जगदेश सेठी और जिल्लोबाई ने निभाई. भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री कमलबाई गोखले थीं. इन्होंने सन् 1915 ई0 में फिल्म भस्मासुर मोहिनी में मोहिनी की भूमिका अदा की. फातिमा बेगम पहली महिला निर्माता निर्देशक बनीं.

प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक अर्देशर ईरानी ने सन् 1937 ई0 में पहली रंगीन फिल्म किसान कन्या का निर्माण किया. पाँचवे दशक में पुकार, सिकंदर जैसी ऐतिहासिक
और भरत मिलाप, रामराज्य जैसी पौराणिक फिल्मे बनीं. सन् 1953 ई0 में सत्यजीत रे ने पाथेर पांचाली का निर्माण किया. इस फिल्म को सर्वोत्तम मानवीय दस्तावेज का खिताब मिला. सन् 1957 ई0 में महबूब खान ने मदर इंडिया का निर्माण किया. जिसने सारे देश में धूम मचा दी. मदर इंडिया आज भी दर्शकों के द्वारा सराही जाती है. इस समय अनेक जग प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक आये, जिन्होंने फिल्मों के माध्यम से जनमानस तक अपनी बात पहुँचाई जैसे- विमल राय, ख्वाजा अहमद अब्बास, राजकपूर, व्ही0 शांताराम, गुरूदत्त, आदि. के0 आसिफ की मुगल-ए-आजम की भव्य प्रस्तुति ने सातवें दशक में अपनी धाक जमाई. जिसमें पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला ने यादगार भूमिकायें निभाईं. मनोज कुमार ने देश-प्रेम से ओत-प्रोत उपकार, पूरब और पश्चिम जैसी फिल्में बनाईं. आठवें दशक में श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्म अंकुर के माध्यम से भारतीय सिनेमा को नये आयाम  दिये, वहीं शोले पिक्चर ने हर वर्ग के हर उम्र के दर्शकों को अपनी ओर खींचा. मि0 इंडिया में विज्ञान फंतासी का प्रभावशाली रूप से प्रयोग किया गया.

नब्बे के दशक में बाजार में वी0 सी0 आर0 और वी0 सी0 पी0 के आ जाने से भारतीय सिनेमा घरों में दर्शकों की संख्या ना के बराबर जाने लगी. ऐसे संघर्षमय समय में सन् 1994 ई0 में सूरज बड़जात्या की फिल्म हम आपके हैं कौन ने न केवल आम दर्शकों को सिनेमा घरों की ओर पुनः आकर्षित किया वरन् सफलता के सारे रिकोर्ड तोड़ते हुये लगभग 200 करोड़ रूपये से भी ज्यादा का व्यापार किया. सन् 1971 ई0 के भारत-पाक युद्ध पर आधारित जे0 पी0 दत्ता की बार्डर फिल्म
भी हिट रही. दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में शाहरूख खान व काजोल की जोड़ी व मधुर संगीत ने कामयाबी के नये आयाम छुये.

इक्कीसवीं सदी में भारत में मल्टीप्लेक्स का निर्माण बहुतायत से होने के साथ-साथ सिनेमाघरो में पिक्चर देखने का चलन तीव्र गति से बढ़ा है. साधारणतः हर साल सौ से भी ज्यादा फिल्म रीलीज होती हैं, जिनमें से एक या दो फिल्म सुपर हिट अवश्य होती है जैसे- जब तक है जान, बजरंगी भाईजान, बाजीराव मस्तानी, आदि. आज भारतीय सिनेमा जगत को सौ वर्ष से भी अधिक हो गये हैं और भारतीय फिल्में भारत में ही नहीं विदेशों में भी सराही जाती हैं.
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