पपइया
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
बाग के कोनों में
देख उगा
‘पपइया’
बाल-मन मुस्काया.
निकाल कर उसे
मिट्टी से
धोया, घिसा
बाजा बनाया.
जब मन में आया
‘पपइया’ बजाया.
नहीं सोच पाया
तब उसका मन
जुड़ा रहता ये ‘पपइया’
कुछ बरस यदि मिट्टी से
एक दिन
बड़ा बनता
रसाल-वृक्ष
और
बसंत बहार में
बौरों से लद जाता.
पत्तों में छुप के
कोयल कूकती
गर्मी के आते ही
डाली-डाली
आमों से लद जाती.
-----------------------
No comments:
Post a Comment