Thursday, June 1, 2017


गीत

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


बरस-बरस बरसे रे घन
सरस-सरस सरसे रे मन।

भीगा आँगन
भीगा आनन
भीगा है
सारा ही तन।

पुलक-पुलक पुलके रे मन
बरस-बरस बरसे रे घन।

भीगे पत्ते
भीगे पेड़
भीगा है
सारा ही वन।

हरष-हरष हरषे रे मन।
बरस-बरस बरसे रे घन।



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