Thursday, June 29, 2017




माँ


अपनी उपमा आप ही होती है माँ
जिंदगी की सीप का मोती है माँ।

फूलते-फलते  हमें  नित  देखकर
अपने सुख की भूख तक खोती है माँ।

अपने गम को गम समझती ही नहीं 
देखकर हमको दुःखी रोती है माँ।

रात-दिन श्रम करके भी थकती नहीं,
हँसते-हँसते बोझ सब ढ़ोती है माँ।

मेरे मन की पीर, तन के घाव को
आँसुओं की धार से धोती है माँ।

सुन के पत्तों का खड़कना जागती
दूसरों की नींद सोती है माँ।
                        -माधव मधुकर






        



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