Friday, June 30, 2017


डॉ0 कुँअर बेचैन जी के 75 वें जन्म-दिन के शुभ अवसर पर 

हार्दिक-शुभकामनायें-1जुलाई, 2017




डॉ0 कुँअर बेचैनः कालजयी रचनायें

   डॉ0 मंजूश्री गर्ग

डॉ0 कुँअर बेचैन बीसवीं सदी के उत्तरार्ध एवम् इक्कीसवीं सदी के पूर्वार्ध के एक महान कवि हैं. आपने अनगिन हिन्दी गजलें एवम् नवगीतों की रचना की है जिनमें मानव मन की विविध संवेदनाओं की अभिव्यक्ति की है. आप लगभग पाँच दशकों से कवि मंच से भी जुड़े रहे हैं. भारत ही नहीं, विदेशों में भी आपने अपने सुमधुर गायन से श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध किया. आज भी आप हिन्दी काव्य-मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं. एक गीत में डॉ0 कुअँर बेचैन ने लिखा भी है-

एक आवाज ने
आज फिर प्यार से
गीत की महफिलों में पुकारा मुझे
हो भँवर या कि वह एक तूफान हो
अब मिलेगा उसी में किनारा मुझे।

गीत की पंक्ति की हर नयी डाल पर
शब्द के फूल फिर मुस्कुराने लगे
      झूमने लग गयी तितलियों सी लयें                                    
नव स्वरों के भ्रमर गुनगुनाने लगे।

डॉ0 कुँअर बेचैन की रचनाओं में- चाहे वो गीत-गजल के अंश हों या दोहा-हाइकु, आदि अन्य कोई विधा- अनेक ऐसी रचनायें हमें मिलती हैं जिन्हें हम कालजयी रचनायें कह सकते हैं.
कालजयी रचनाओं से अभिप्राय ऐसी रचनाओं से है जो समसामयिक, शाश्वत, सार्वकालिक, सार्वभौमिक हों.

समसामयिक

समसामयिक से अभिप्राय है जिस काल में कवि या लेखक जीता है उसकी रचनाओं में उस समय की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक पृष्ठभूमि की झलक अवश्य होती है, इसीलिये साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है- (डॉ0 मंजूश्री गर्ग). डॉ0 कुँअर बेचैन के प्रस्तुत दोहे में कंक्रीटी जंगलों के पनपने पर खेतों के मन की पीड़ा को अभिव्यक्त किया गया है-

सिसक-सिसक गेहूँ कहे, फफक-फफक कर धान।
खेतों में फसलें नहीं, उगने लगे मकान।।

शाश्वत

शाश्वत से अभिप्राय कवि या लेखक की रचनाओं में ऐसी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से है, जो ब्रह्म की तरह अजर, अमर हैं. जैसे- प्रेम की अनुभूति, विरह की अनुभूति-(डॉ0 मंजूश्री गर्ग). जैसे प्रस्तुत दोहे में कवि ने शाश्वत अनुभूति की अभिव्यक्ति करते हुये लिखा है-                                    

मधुऋतु का कुछ यों मिला उसको प्यार असीम।
कड़वे से मीठा हुआ, सूखा रूखा नीम।।

अर्थात् जब भी किसी को जीवन में सच्चा प्यार मिलता है, तो उसका नीरस जीवन भी सरसता से भर जाता है.

सार्वकालिक

सार्वकालिक से अभिप्राय कवि या लेखक की रचनाओं में ऐसी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से है जो कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी-(डॉ0 मंजूश्री गर्ग). हमारे समाज की बहुत बड़ी बिडम्बना है कि बेटी चाहे जितने भी सम्पन्न परिवार में जन्म ले, उसे एक दिन अपने बाबुल के घर को छोड़ के जाना ही होता है और तब नये घर के कर्तव्यों के बोझ तले चाहकर भी मायके नहीं आ पाती है. कभी-कभी तो रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर भाई को राखी भी नहीं भेज पाती है.इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने बहुत ही सुन्दर ढ़ंग से  प्रस्तुत गीत में की है-

अब के बरस राखी
भेज न पाई
सूनी रहेगी
मोरे वीर की कलाई
                                                  
पुरवा!
भैया के अँगना जइयो
छू-छू कलाई कहियो
कहियो कि हम हैं तोरी बहना की रखियाँ

प्रस्तुत गीत में बहन पुरवा के माध्यम से भाई तक अपनी राखी ही नहीं पहुँचाती, वरन् अपने मन की व्यथा भी अभिव्यक्त करती है.

सार्वभौमिक

सार्वभौमिक से अभिप्राय कवि या लेखक की रचनाओं में ऐसी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से है जो पृथ्वी पर सब जगह एक समान देखने को मिलती हैं चाहें हम पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों न हों-(डॉ0 मंजूश्री गर्ग) माता-पिता हमेशा बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिये जीवन-पर्यन्त प्रयत्नशील रहते हैं जहाँ माँ घर पर बच्चों को अपनी छाया में पालती हैं, वहीं पिता स्वंय धूप में जलकर भी घर में हर सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करते हैं, इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत गीत के अंश में की है-
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--ओ पिता,
तुम गीत हो घर के
और अनगिन काम दफ्तर के।

                       छाँव में हम रह सकें यूँ ही                         
धूप में तुम रोज जलते हो
तुम हमें विश्वास देने को
दूर, कितनी दूर चलते हो।

आशा करते हैं कि भविष्य में भी डॉ0 कुँअर बेचैन अनेकों ऐसी कालजयी कृतियों की रचना करेंगे, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर होंगी।


















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