Monday, September 30, 2024


उठती-गिरती लहरें, कहती हैं कथा प्यार की।

सागर की बाँहों में, चाँदनी सिमट आयी है।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, September 29, 2024


मेरे गम से बेखबर तो नहीं,

फिर भी बेरूखी कम तो नहीं।

नम आँखें तेरी कह रही,

गम तुझे भी कम तो नहीं।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, September 28, 2024


बरसते मेघ-दल से कहिये,

पिघलते हिम-खंड से कहिये।

कहनी है बात दूर तलक तो,

बहती हुई पवन से कहिये।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, September 27, 2024


आँधियों में दीपक की लौ को देखो।

बारिशों में नदी के वेग को देखो।।

उछाल के देखो गमों की सौगातें।

व्यक्तित्व में निखार फिर और देखो।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 26, 2024

 

सुबह सुहानी छाँव में,

पक्षी के मधु कुंजन में,

गुमसुम सा बैठा है कोई

गुम साथी की याद में।।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, September 25, 2024


 सीमित दायरों में, बढ़ रहे हैं वट-वृक्ष।

विकास-पथ पर, ये नया कदम है।। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, September 24, 2024


जरा तो मुस्कुरा के चल,

कि चाँदनी बिखरा के चल।

बहुत अँधेरा है दिल में,

जरा उजाला कर के चल।।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, September 23, 2024


मैं ही मैं हूँ, तो क्या मैं हूँ

तुम ही तुम हो, तो क्या तुम हो

मैं भी हूँ, तुम भी हो, तो हम हैं। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, September 22, 2024


शांत, निश्छल बहती हवायें,

ना दिन हैं लम्बे, ना ही रातें।

ना गर्मी के दिन, ना ही सर्दी के,

सुहाना सा मौसम है शरद का। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, September 21, 2024


घिस-घिस चंदन महक लुटाये,

पिस-पिस मेंहदी रंग लाये।

फूल खिलें, सजें या बिखरें,

हर पल पवन को महकायें।।

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, September 20, 2024

 

जहाँ पूर्ण विकास है,

वहाँ ठहराव है।

जहाँ ठहराव है

वहाँ विकास का मार्ग अवरूद्ध है।।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, September 19, 2024


शब्दों के मनकों में, मन की आभा।

कविता की माला में, जीवन गाथा।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, September 18, 2024


तुम आये तो जीवन की राह नजर आई।

अँधेरे में उजाले की ज्यों किरण नजर आई।।


               डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 17, 2024


बहने दो स्नेह की सहज, सरस, मधुर धारा।

सिंचित हो जिससे महके जीवन की बगिया।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, September 16, 2024


 ठोकर नहीं कहती कि रोक दो बढ़ते कदम।

कहती है बढ़ते रहो आगे सँभल-सँभल कर।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, September 15, 2024

 

हमीं द्वीप हैं, मानवता के सागर में व्यक्तित्व के छोटे-छोटे द्वीप: और प्रत्येक क्षण एक द्वीप है-खासकर व्यक्ति और व्यक्ति के सम्पर्क का कॉन्टेक्ट का प्रत्येक क्षण-अपरिचय के महासागर में एक छोटा किन्तु कितना मूल्यवान द्वीप।


                                        अज्ञेय जी

Saturday, September 14, 2024

 

निभाता है प्रीत......

प्रातः काल में भरता

पूरब की माँग।

साँध्य समय

सजाता बिंदी

पश्चिम के माथ।

निभाता है प्रीत

सूरज दोनों से ही।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Friday, September 13, 2024


14 सितम्बर, 2024 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

आज के ही दिन हिन्दी भाषा को भारत के संविधान

में

राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई


 

हिन्दी भाषा

 

ऐसा ना हो

झंड़े की तरह

लहरे, उतर जाये

हिंदी दिवस’.

 

हिन्दी मातृ भाषा

है हमारी

रग-रग में

समायी है हिन्दी.

 

हिन्दी सहचरी

है हमारी

पग-पग पे

निभाती है हिन्दी.

 

हिन्दी शिक्षिका

है हमारी

ज्ञान-विज्ञान सभी

सिखाती है हिन्दी.


है हिन्दी दिवस

हमारे लिये हर दिन.

हर दिन ही नहीं

हर पल है हिन्दी.


Thursday, September 12, 2024


 

बूँद-बूँद से समुद्र बने

फूल-फूल से उपवन

तुम अपने को कम

मत समझो, तुमसे ही

देश और विश्व बने। 

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग


मूर्तियाँ तो बनती हैं और टूट जाती हैं, लेकिन व्यक्ति जो अपने पुरूषार्थ से अपना व्यक्तित्व बनाता है वो युगों-युगों तक अमर रहता है।

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, September 11, 2024


एक दिन.......

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

है कविता में सूरज सी आग

तो खिलेगी धूप सी एक दिन।

 

है अगर चाँदनी चाँद सी

तो देगी शीतल छाँव एक दिन।

 

धुंध हो, या हों बादल, बाधायें

किसकी दूर होती नहीं एक दिन।

 

Tuesday, September 10, 2024


नजर उठीं,

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

 

नजर उठीं,

उठकर लड़ी,

लड़कर झुकीं,

झुककर खिली।

 

तुम भँवरा बने,

हम फूल बने,

तुम गूँजे,

फिर उड़े,

हम खिले,

फिर बुझे।

Monday, September 9, 2024


 9 सितंबर, 2024, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी को जन्म-जयंती पर शत्-शत् नमन

Sunday, September 8, 2024


पारखी नजरें--

 

हर गोल चीज चाँद नहीं होती।

हर पीली चीज सोना नहीं होती।

हर पत्थर नगीना नहीं होता।

परख ही लेती हैं पारखी नजरें,

जिसको जिसकी चाहत होती है।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, September 7, 2024


बादल राग

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

बादल मनाने को

कोई नहीं गाता

अब बादल राग।

आवारा हुए बादल

जहाँ मर्जी वहाँ

बरसते हैं बादल।

भिगो दें सारी

धरा का आँचल

ऐसा अनुशासन

अब बादलों में नहीं।

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7 सितम्बर, 2024 श्रीगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें

 

 

Friday, September 6, 2024

 

मंजिल एक है दोनों की

             डॉ. मंजूश्री गर्ग

आओ! जी भर बात कर लें आज

न जाने ये पल कब आयें जीवन में।

राह तुम्हारी है कठिन

आसान हमारी भी नहीं।

मिलना ही है एक दिन हमको

मंजिल एक है दोनों की।

पर राहें अलग-अलग हैं।


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Wednesday, September 4, 2024


आँगन में बीज बोकर नेह से सींचा

पौध शजर होकर बदल जाता क्यों है।

                         उर्मिल 

Tuesday, September 3, 2024


जब बच्चे छोटे होते हैं तो नादानी के कारण ऐसी वस्तुओं को लेने की जिद्द करते हैं कि माँ-बाप के लिये उसे पूरा करना असम्भव होता है. ऐसे ही बाल मन के हठ का वर्णन कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में किया है-

मैया मैं तो चन्द खिलौना लैहौं।

जैहों लोटि धरनि मैं अबहिं तेरी गोद न ऐहौं।

सुरभि का पयपान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।

ह्वै हौ पूत नन्दबाबा को तैरो सुत न कहैहौं।

                                    सूरदास 

Monday, September 2, 2024


धरती से उड़ चली पतंग

 डॉ. मंजूश्री गर्ग


धरती से उड़ चली पतंग

आकाश छूने चली पतंग.

इतराई, मंडराई, भूली

धरती से है गहरा नाता.

डोर कटी तो पट से

धरती पर आन गिरी।

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Sunday, September 1, 2024


एक बूँदः

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

सागर से चुराकर अपना अस्तित्व

वाष्प बन रख लिया बादल रूप।

 

सूरज से चुराकर उसकी किरणें

इन्द्रधनुषी रंग में रंगा तन-मन।

 

तपती धरती को देख मन तड़पा

अश्रु लड़ी में पिर आयी धरती पर।

 

किन्तु सीपी में गिरी, बनी एक मोती

एक बूँद नन्हीं सी, प्यारी सी।

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